________________
से प्रभावित संजा धर्मघोष को देश निकाला दे दिया । उसने राजगृह नगर में स्थविर मुनि से दीक्षा ले ली । विहार करते-करते वरदत्तनगर पहुँचा वहाँ वरदत्त नामक मन्त्री ने निर्दोष आहार के रूप में खीर का बर्तन दिया जिसकी एक बूंद नीचे गिर गई । मुनि आहार लिये बिना ही चल दिये ।
वरदत्त मन्त्री सोच ही रहा था कि खीर की बूंद पर एक मक्खी आयी, उसे देखकर एक छिपकली आयी, उसे देखकर एक कौआ आया, कौए को देखकर एक बिल्ली आयी और उसे देखकर एक कुत्ता आया और उसे देखकर मुहल्ले के सभी कुत्ते आए । वे आपस में भौंकने लगे । इस पर घाट के नौकर ने कुत्तों को मारा। इस पर नौकर और महल्ले के लोगों में जमकर मार होने लगी । यह देखकर वरदत्त मन्त्री सोचने लगा और मुनि को धन्यवाद दिया । उसने जाति स्मरण ज्ञान से मुनिवेश धारण किया और सुसुमार नगर के नागदेव मन्दिर में कायोत्सर्गस्थ होकर खड़े रहे । उस समय सुसुमार पुर के धुंधुमार राजा की सुन्दरपुर पुत्री अंगारवती के साथ विवाह हारी हुई योगिनी ने अंगारवती का चित्र बनाकर चन्द्रप्रद्योत राजा को दिया । उसको पाने के लिए लालायित राजा धुंधुमार से अंगारवती की मांग की । इनकार करने पर उसने धुंधुमार पर चढायी कर दी । धुंधुमार ने नैमित्तिक से अपने हार या जय के बारे में पूछा । उसने कुछ बच्चों को डराया । वे बच्चे भयभीत होकर वरदत्त मुनि के पास गये । मुनि ने कहा – डरो मत तुम्हें कोई भय नहीं है । मुनि की बात सुनकर नैमित्तिक ने राजा से उनके विजय की भविष्यवाणी की । धुंधुमार और चण्डप्रद्योत में युद्ध हुआ । चण्डप्रद्योत हार गया । धुंधुमार ने उसे मेहमान समझकर अपनी पुत्री की शादी उससे कर दी।
एक बार चण्डप्रद्योत के पूछने पर अंगारवती ने पिता की विजय का कारण बता दिया । वह मुनि के पास जाकर कहा - हे नैमित्तिक ! मैं आपकी वन्दना करता हूँ । मुनि को वह घटना याद आयी और वे इस दोष की आलोचना कर सद्गति पाये। ३५. चन्द्रावतंसक राजा की कया
साकेतपुर का राजा चन्द्रावतंसक धार्मिक था । उसकी सुदर्शना नाम की रानी थी । एक दिन उसने अभिग्रह किया कि जब तक यह दीपक जलेगा तब तक मैं कायोत्सर्ग में स्थिर होकर खड़ा रहूँगा । दीपक के मन्द पड़ने पर राजा के अभिग्रह से अनभिज्ञ दासी उसमें तेल डाल दिया करती थी । इस प्रकार चारों पहर बीत गये
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org