________________
में पड़ी, राजा विश्वस्त होकर वापस आया । जितशत्रु के सेवकों ने राजा को गिरफ्तार कर लिया और लोहे की कोठरी में डाल दिया जहाँ से मरकर सातवीं नरकभूमि में गया । श्री कालिकाचार्य चारित्राराधन कर देवलोक में गये । ३१. भगवान महावीर के पूर्व जन्म की कथा
प्रथम भव में पश्चिम महाविदेह में भगवान महावीर का जीव नयसार रूप में था । किसी ग्रामाधीश के अधीन नयसार वन का अधिकारी एक दिन जंगल में लकड़ियां कटवाने गया हुआ था । दोपहर को खाना के समय आये हुए साधु को आहार पानी करा कर रास्ता बताने चल पड़ा । साधु ने उसे उपदेश देकर बोध कराया। महामन्त्र का जाप करते हुए मरकर दूसरे भव में वह देव बना । वहाँ से तीसरे भव में भरत चकवर्ती के पुत्र मरीचि के रूप में जन्मा । युवावस्था में विरक्त होकर उसने स्थविर मुनि से दीक्षा ग्रहण की । उसने अपनी कल्पना से त्रिदण्डी का
अनोखा वेष अपनाया । एक बार अयोध्या में भरत के द्वारा पूछने पर कि भावी तीर्थंकर कौन है । भगवान ऋषभदेव ने उनके ही पुत्र मरीचि को बताया । इससे खुश हुए भरत ने मरीचि की वन्दना कर उनको इस बात से अवगत करा दिया । यह सुनकर मरीचि फूले न समाये और नीच गोत्र कर्म बाँध लिया । भगवान ऋषभदेव के निर्वाण के बाद उनके साधुओं के साथ विचरण करते हुए मरीचि एक बार बीमार पड़ा । शिथिलाचारी होने के कारण कोई उसकी शुश्रूषा नहीं करता था जिससे क्षुब्ध होकर उसने कपिला को योग्य शिष्य बनाया और सूत्र विरुद्ध प्ररूपणा करके कोटाकोटि सागरोपम संसार की वृद्धि की । चौथे भव में वह १० सागरोपम की स्थितिवाला देव बना । वहाँ से पाँचवें भव में कोल्लाक सन्निवेश में विषयासक्त ब्राह्मण बना और अन्तिम समय में दीक्षा लेकर आयुष्य पूर्ण किया । छठे भव में स्थूणानगरी में पुष्य नामक ब्राह्मण बना त्रिदण्डी वेष में उसका देहान्त हुआ । सातवें भव में मध्यम स्थितिवाला देव बना । वहाँ से आठवे भव में चैत्य सन्निवेश नामक गाँव में अग्निद्योत नामक ब्राह्मण बना । अन्तिम समय में त्रिदण्डी वेश धारण किया । ग्यारहवें भव में तीसरे कल्प में देव बना । बारहवें में श्वेताम्बरी में भारद्वाज नामक ब्राह्मण बना । तेरहवें में महेन्द्रकल्प में देव बना । १४वें राजगृह नगर में स्थावर नामक ब्राह्मण बना । १५वें में ब्रह्मलोक नामक स्वर्ग में देव बना । १६वें में विश्वभूति नामक युवक बना । विरक्त होकर सम्भूति मुनि से दीक्षित होकर गोचरी के समय गाय से आहत होकर गिर गया । अपने चचेरे भाई के तानेकशी पर उसने गाय को मरणासन्न बना
७७
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org