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उपवास का पारणा खीर से करते हुए देखा । मेरा शिष्य होने के लिए यह मेरे साथ ६ वर्ष तक रहा ।
एक समय किसी तापस का मजाक उड़ाने पर तापस ने इस पर तेजोलेश्या छोड़ी जिसे मैंने शीतलेश्या से शान्त कर दिया । इसके तेजोलेश्या प्राप्त करने का उपाय पूछने पर मैंने उसे बताया । फिर वह मुझसे अलग होकर तेजोलेश्या को सिद्ध किया और अष्टांग निमित्त का ज्ञान प्राप्त किया और इस समय अपने को सर्वज्ञ कहता हुआ फिर रहा है । भगवान की बात सुनकर चारों तरफ लोग उसका अपमान करने लगे । इससे क्रोधित होकर गोशालक ने आनन्द नामक साधू से एक दृष्टान्त कहा
मालगाड़ियां लेकर व्यापार करने जा रहे कई व्यापारियों को एक जंगल में जोर की प्यास लगी । पानी की खोज करते-करते उन्हें चार बांबियां मिलीं । उनमें से एक बांबी के शिखर को तोड़ा तो निर्मल पानी मिला । वे सब तृप्त हुए और जलपात्र भी भर लिए । एक वृद्ध वणिक के मना करने पर उन लोगों ने शेष को भी फोड़ा, जिसमें क्रमश: सोना, रत्न और विषधर निकला । विषधर ने वृद्ध को छोड़कर सबको मार डाला । उसी प्रकार हे आनन्द ! मैं तुम्हें छोड़कर सबको अपने तेज से भस्म कर दूंगा । आनन्द ने यह बात भगवान को बताई । भगवान ने सब मुनियों को सावधान कर दिया । गोशालक आते ही अपना परिचय देने लगा कि वह महावीर का शिष्य गोशालक मर चुका है । मैं उसके शरीर में प्रविष्ट दूसरा जीव हूँ। गुरुभक्तिवश सुनक्षत्र में उससे कहा – नहीं, तुम वही गोशालक हो । इस पर नाराज होकर गोशालक ने सुनक्षत्र को तेजोलेश्या छोड़कर भस्म कर दिया । मरकर वह आठवें देवलोक में उत्पन्न हुआ" । सर्वानुभूति नामक शिष्य को भी ऐसा कहने पर गोशालक ने जला दिया जो बारहवें देवलोक में उत्पन्न हुआ। तत्पश्चात् भगवान् ने कहा - तू वही गोशालक है अपने आपको छिपाने की कोशिश कर रहा है । इस पर नाराज होकर गोशालक ने उन पर भी तेजोलेश्या छोड़ी, लेकिन वह प्रदक्षिणा करके वापस गोशालक को ही जलाने लगी जिससे वह बड़बड़ाने लगा और महावीर से कहा - तुम आज से सातवें दिन मर जाओगे । भगवान् ने कहा मैं अभी सोलह वर्ष तक रहूँगा, लेकिन तुम आज से सातवें दिन मरोगे । सातवें दिन गोशालक मर गया । उसके कथनानुसार उसके शव को पैर बाँध कर नगर में घुमाया गया । २९. केशीगणधर और प्रदेशी राजा की कया
जम्बुद्धीप, भरतक्षेत्र, केकयार्ध देश के श्वेताम्बी नगरी का दुष्ट अधर्मी राजा
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