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खीर की सामग्री दे दी । धन्या ने खीर बनाई और कहकर बाहर चली गयी कि ठंडी होने पर खा लेना । वह खीर को ठंडी कर रहा था कि एक मुनि उसके पास भिक्षार्थ आये । उसने थाली में निकाली खीर मुनि को दे दी । मुनि के जाने के बाद संगम की माँ ने बची हुई खीर भी संगम को दे दी । वह झटपट खा गया । माँ को उसके भूखा रहने पर बहुत अफसोस हुआ । ज्यादा खा लेने के कारण संगम के पेट में पीड़ा हुई वह उसी रात को चल बसा और गोभद्रसेठ की पत्नी भद्रा सेठानी के यहाँ पुत्र रूप में उत्पन्न हुआ । भद्रा ने स्वप्न में शालिधान के खेत देखा था । जिससे पुत्र का नाम शालिभद्र रखा । उसने ३२ कन्याओं से शादी की । गोभद्रसेठ ने मुनिदीक्षा ली और मरकर देवलोक में देव बना । पुत्रस्नेह के कारण गोभद्र का जीव अपने पुत्र और बहओं को ९९ पेटी कपड़े तथा आभूषण भेजता था । शालिभद्र की समृद्धि देखने आये श्रेणिक राजा को देखकर शालिभद्र को सांसारिक बन्धन का आभास हुआ। उसने भगवान महावीर के पास दीक्षा ग्रहण की ३ । १२ वर्ष तक घोर तपस्या करके १ मास का अनशन पूर्ण किया और मरकर अहमिन्द्र देव बना । २४. अवन्ति सुकुमाल
अवन्ति देश के उज्जयिनी नगरी में भद्रा नाम की धनिक पत्नी से नलिनीगुल्म विमान से आयु पूर्ण कर एक पुत्र पैदा हुआ । बड़ा होकर वह अनेक सुख भोग रहा था कि निकटवर्ती उपाश्रय के सुस्थिर मुनि से नलिनीगुल्म का वर्णन सुनकर जाति स्मरण हुआ । उसने मुनि से वहाँ जाने का उपाय पूछा, मुनि के कथनानुसार उसने मुनिदीक्षा अंगीकार की और श्मशान भूमि में जाकर कायोत्सर्ग किया । समभावपूर्वक असह्य वेदना सहन करने कारण आयुष्यपूर्ण कर नलिनीगुल्म विमान में देवरूप में उत्पन्न हुआ । प्रात:काल सारा वृत्तान्त जानकर भद्रा ने भी एक गर्भवती बहू को छोडकर सभी बहुओं के साथ दीक्षा ग्रहण की । गर्भवती बहू से पुत्ररत्न पैदा हुआ । बड़ा होकर उसने श्मशानभूमि में एक मन्दिर बनवाया और उसमें जिन प्रतिमा स्थापित की । महाकाल" नाम रखा गया श्मशान का । २५. श्रीमैतार्यमुनि
साकेतपुर में चन्द्रावतंसक धार्मिक राजा और उसकी दो रानियाँ सुदर्शना और प्रियदर्शना थीं । सुदर्शना के पुत्र सागरचन्द्र और मुनिचन्द्र क्रमश: युवराज और उजयिनी के राजा थे । प्रियदर्शना के दो छोटे-छोटे पुत्र गुणचन्द्र और बालचन्द्र थे।
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