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________________ बनी । उधर नौकर मरकर ब्राह्मण के घर जन्मा और पूर्वजन्म के ऋणानुबन्ध के कारण उसी वैश्या के वहाँ नौकरी करने लगा । घर का सारा काम खत्म कर लेने पर ही उसे खाना मिलता था । इस प्रकार पूरी जिन्दगी उसने उसका कर्ज चुकाने में बिताया। मगर मैं उसकी तरह भोगों की आशा का दास बनकर घर में अब जिन्दगीभर नहीं रहूँगा । इस पर सातवीं पत्नी ने कहा – नाथ ! यदि आप हमारा कहना नहीं मानते तो मासाहस पक्षी की तरह आपको कष्ट उठाने पड़ेंगे, जिसका वृत्तान्त इस प्रकार हैकिसी जंगल में मासाहस नाम का एक पक्षी सोए हुए शेर के मुँह में प्रवेश करके दाढ़ों में छिपे हुए मांसपिण्ड को चोंच से बाहर निकालता था और कहता था - "ऐसा साहस मत करो" वह हमेशा यही करता और कहता था । पक्षियों ने उसे समझाया मगर वह माना नहीं । एक दिन जब वह मुँह में घुसा था तभी शेर जग गया और उसे खा गया । यह सुनकर जम्बूकुमार ने कहा – मृत्यु से रक्षा धर्म के सिवाय और किसी से नहीं हो सकती । सुनो एक दृष्टान्त - सुग्रीवपुर में जितशत्रु राजा का सुबुद्धि नामक मन्त्री ने अपने जीवन में नित्यमित्र, पर्वमित्र और प्रणाममित्र, तीन मित्र बनाया । एक बार मन्त्री से भारी अपराध हो गया राजा ने उसे प्राणदण्ड देने की सोच ली । मन्त्री प्राणरक्षा के लिए भगकर नित्यमित्र के पास गया । लेकिन नित्यमित्र ने उसे छिपाने से इनकार कर दिया । पर्वमित्र के पास भी निराश होकर वह प्रणाममित्र के पास गया जहाँ उसे पूर्ण संरक्षण प्राप्त हुआ । बाद में अपराध झूठ साबित हुआ और उसे मृत्युदण्ड से मुक्ति मिल गयी । अर्थात् विपदा में एकमात्र प्रणाममित्र धर्म ही संरक्षण देता है । अत: मैं धर्म की उपेक्षा नहीं करूँगा । अन्त में आठवीं पत्नी जयश्री ने कहा – स्वामिन् ! आप कपोल कल्पित कथाओं से उस ब्राह्मणपुत्री की भाँति हमें क्यों ठगते हैं । सुनिए, भरत क्षेत्र में लक्ष्मीपुर नगर के नयसार राजा को संगीत, कथा, नाटक, पहेलियां इत्यादि का बहुत शौक था । वह प्रतिदिन नगर के लोगों से बारी-बारी से कहानी सुनता था । एक बार एक मूर्ख एवं कहानी सुनाने में असमर्थ ब्राह्मण की बारी आयी । उसकी चतुर कन्या ने राजा को कहानी सुनाने का आश्वासन दिया । उसने राजा से अपने अनुभव ६० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001706
Book TitleUpdeshmala
Original Sutra AuthorDharmdas Gani
AuthorDinanath Sharma
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2000
Total Pages228
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, literature, & Sermon
File Size11 MB
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