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________________ को परपुरुष के साथ सोया देख चुपके से उसके दांये पैर का नूपुर निकाल लिया । जगने पर दुर्गिला परिस्थिति को भाँप गयी । वह उस पुरुष को भगाकर अपने पति को लेकर अशोकवृक्ष के नीचे सो गयी । थोड़ी देर बाद अपने पति को जगाकर श्वसुर द्वारा नूपुर चुराये जाने की बात कही, जिससे नाराज होकर देवदिन्नि ने अपने पिता को बहुत डाँटा । पिता द्वारा सही बात कहने पर वह दुर्गिला अपने को सत्य प्रमाणित करने के लिए पड़ोसियों को लेकर प्रभावक पक्ष के पास चल दी । रास्ते में वह पुरुष पागलों का-सा वेष बनाये हुए आया और दुर्गिला से चिपक गया । लोगों ने उसे पागल समझकर छोड़ दिया । मन्दिर में उसने कहा - हे देव ! यदि मैंने अपने पति और इस पागल के सिवाय किसी परपुरुष को स्पर्श किया हो तो मुझे सजा दो । यक्ष विचार करने लगा । इसी बीच दुर्गिला उत्तर की राह देखे बिना यक्ष की जांघों के बीच से होकर निकल गयी । जिससे लोगों को विश्वास हो गया और देवदत्त निन्दा का पात्र बना। इस पर जम्बूकुमार कहने लगे - भरतक्षेत्र में कुशवर्धन नामक गाँव था जिसमें विद्युन्माली और मेघरथ नामक दो विप्रभ्राता रहते थे । एक बार किसी कार्यवश वे जंगल में गये वहाँ एक विद्याधर ने उन्हें मातंगी विद्या सिद्ध करने की विधि बतायी और कहा कि साधना के समय यह मातंगी देवी तुमसे सम्भोग की प्रार्थना करेगी। ____ यदि तुम अविचलित रहोगे तो विद्या सिद्ध होगी, वरना नहीं । विद्या की साधना में विद्युन्माली असफल और मेघरथ सफल रहा । मेघरथ को बहुत-सा धन मिला । इस प्रकार जो कामभोगों से अविचलित रहता है वही सुखी होता है । चौथी पत्नी बोली – यदि आप अपना आग्रह नहीं छोड़ेंगे तो अतिलोभ के कारण आपको कौटुम्बिक की भाँति पछताना पड़ेगा । वह खेत से पक्षियों को भगाने के लिए शंख बजाया करता ता । किसी समय कुछ चोर गाय चूराकर उसके खेत के पास में लाए । शंख की आवाज़ से वे चोर भग गये, कौटुम्बिक सभी गायों को लाया और बेच दिया । यह घटना तीन बार हुई जिससे वह धनी हो गया । चौथी बार उसकी बदमाशी समझकर उसे मार डाला । जम्बू बोले - तुम्हारी बात सच है । जो अतिकामी होता है उसे तृषातुर बन्दर की तरह दुःखी होना पड़ता है, जो पानी की भ्रान्ति से कीचड़ में गिर गया। कीचड़ से लथपथ उसका शरीर ठंडक महसूस करने लगा । लेकिन उसकी पिपासा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001706
Book TitleUpdeshmala
Original Sutra AuthorDharmdas Gani
AuthorDinanath Sharma
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2000
Total Pages228
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, literature, & Sermon
File Size11 MB
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