________________
देव बना । इसके बाद पाँचवें भव में वह देव राजगृहनगर में ऋषभदत्त सेठ के यहाँ धारिणी देवी के यहाँ पुत्ररूप में पैदा हुआ । जम्बूकुमार नामक इस बालक ने सभी कलाओं का अध्ययन किया । आठ कन्याओं से उसकी शादी हुई । सुधर्मा स्वामी का धर्मोपदेश सुनकर उसे वैराग्य हो गया । लेकिन उसके माता-पिता एवं पत्नियों ने उसे बहुत समझाया ।
उसी समय प्रभव नामक चोरों के सरदार ने अपने साथीयों के साथ जम्बू के घर में डाका डाला । वे सामान ले जा रहे थे कि जम्बू के पंच परमेष्ठी नमस्कारमन्त्र के कारण वे सब स्तम्भित हो गये । चोरों के सरदार ने जम्बूकूमार से छुड़वाने के लिए बहुत विनती की और विद्याओं के आदानप्रदान के लिए आग्रह किया। जम्बूकुमार ने कहा मेरे पास कोई विद्या नहीं है । मैं मधुबिन्दु पुरुष के समान दुःख पाना नहीं चाहता । इसलिए मुझे मुनिदीक्षा लेनी है । प्रथम के पूछने पर उन्होंने मधुबिन्दु पुरुष के दुःख की बात कही
अपने साथियों से बिछुड़े हुए एक आदमी को एक जंगली हाथी मारने के लिए दौड़ा । भाग कर वह एक कुँए में लटकती वटवृक्ष की शाखा से लटक गया। लेकिन नीचे दो अजगर मुँह फाड़े खड़े थे । उस शाखा में मधुमक्खियों का छत्ता था। मधुमक्खियां उसे काट रही थीं । उस शाखा को दो चूहे कुतर रहे थे । उसे महान् संकट में देखकर किसी विद्याधर ने उसे अपने विमान में बैठ जाने के लिए कहा लेकिन मधुबिन्दुओं की लालच होने से थोड़ी देर रुकने को कहा । बहुत देर के बाद जब वह नहीं आया तो वह विद्याधर चला गया । बाद में वह मूर्ख पछताने लगा । इस प्रकार जम्बूकुमार को बहुत समझाया । प्रभव के पूछने पर कि आपने जवानी में ही पुत्रादि को क्यों छोड़ दिया, उन्होने कहा
इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है क्योंकि एक ही जन्म में १८ रिश्ते नाते जुड़े हैं । उन्होंने इसे खोलकर समझाया
मथुरा नगरी में कुबेरसेना नामकी एक वेश्या रहती थी । एक बार उसके कबेरदत्त और कुबेरदत्ता नाम के जुड़वे पैदा हए । वेश्या ने किसी स्वार्थवश दोनों को नामांकित अंगूठी अंगुली में पहनाकर एक पेटी में रखकर नदी में बहा दिया । वह पेटी बहती हुई शोरीपुर पहुँची जहाँ से दो सेठ उसे अपने घर ले गये । जवान होने पर दोनों सेठों ने उन दोनों की शादी कर दी । एक बार चोपड़ खेलते समय कुबेरदत्ता
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org