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बताया । वह रातभर आत्मनिन्दा ही करती रही । मृगावती को केवलज्ञान प्राप्त हुआ। संयोगवश एक सांप चन्दनबाला के हाथ के पास से होकर गुजर रहा था ।
मृगावती ने उसे केवलज्ञान से देखकर चन्दनवाला का हाथ संथारे पर कर दिया, जिससे चन्दनवाला जग गयी । पूछने पर मृगावती ने हाथ हटाने का कारण बता दिया और अपने केवलज्ञान को भी बताया । चन्दनबाला ने उससे बहुत क्षमा मांगी
और उसके चरणों पर पड़ी । इस प्रकार आत्मनिन्दा से चन्दनबाला को भी केवलज्ञान प्राप्त हुआ । ११. जम्बूस्वामी की कथा
एक बार श्रमण भगवान महावीर विहार करते हुए राजगृहनगर में पधारे । राजा श्रेणिक उनकी वन्दना के लिए वहाँ आये तथा साथ में एक देव भी आया । देव को उसका स्वरूप पूछने पर उन्होंने कहा – “आज से सातवें दिन तुम आयुष्य पूर्ण करके मनुष्य जन्म प्राप्त करोगे ।" यह सुनकर वह देव वापस लौट गया । राजा श्रेणिक के पूछने पर कि वह देव कहाँ और किसके वहाँ जन्म लेगा, उन्होंने बताया- यह देव इसी राजगृह नगर में जम्बू नाम का अन्तिम केवली होगा । राजा के उसके पूर्व जन्म के बारे में पूछने पर भगवान् ने कहा - जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में सुग्रीव नामक गाँव में राबड़ और रेवती नामक दम्पति रहते थे । जिनके दो पुत्र, भवदेव और भावदेव थे । भवदेव ने समय पर दीक्षा ग्रहण कर ली । एक बार भवदेव विहार करते-करते अपने गाँव आये । नवविवाहित भावदेव उनके दर्शनार्थ गया, उसे भी वैराग्य हो गया । भवदेव ने जीवन पर्यन्त वह चारित्राधन किया । उनकी मृत्यु के बाद स्त्रीप्रेम याद आने के कारण भावदेव अपने गाँव आया । संयोग से वह अपनी ही नवदीक्षिता पत्नी नागिला को यह रहस्य बताया । उसकी पत्नी ने उसे सुन्दर उपदेश देकर चारित्र में दृढ़ किया । नागिला का जीव एक जन्म लेकर मोक्ष प्राप्त करेगा । भावदेव तीसरे देवलोक के देव बना । तत्पश्चात् वह जम्बूद्वीप के पूर्व विदेह क्षेत्र के पद्मरथ राजा के यहाँ वनमाला की कुक्षि में पुत्ररूप में उत्पन्न हुआ । युवक शिवकुमार ने पाँच सौ कन्याओं से विवाह किया ।
एक दिन वह किसी मुनि से धर्मोपदेश सुनकर माता-पिता से मुनिदीक्षा लेने की अनुमति मांगी । अनुमति न मिलने पर वह घर में ही तप और पारणा इत्यादि करने लगा । बारह वर्ष की तपस्या के बाद वह प्रथम देवलोक में विद्युन्माली नामक
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