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पाँच सौ सुन्दर पत्नीयाँ थीं६ । वह उन्हें कभी बाहर नहीं जाने देता था । एक बार वह अपने मित्र के वहाँ भोजन करने गया । उस दिन सभी स्त्रियों ने सुअवसर देखकर श्रृंगार इत्यादि करके एक साथ मनमानी क्रीड़ा करनी शुरू कर दी । इतने में सोनी अपने घर आया । उसने स्त्रियों की चेष्टा देखकर एक स्त्री को मार डाला जिससे शेष सभी स्त्रियों ने मिलकर उसे मार डाला और स्वयं भी आग लगाकर मर गयीं ।
प्रथम जो स्त्री मरी थी उसने गाँव में किसी सेठ के यहाँ पुत्र रूप में तथा स्वर्णकार के जीव ने उसी घर में पुत्री रूप में जन्म लिया । वह पूर्वजन्म की कामासक्ति के कारण जन्मते ही रुदन करती थी। किसी समय उसके भाई का हाथ उसकी योनि पर लग जाने से वह चूप हो गयी । अब यही उसे चूप करने का उपाय था । पिता के मना करने पर जब वह नहीं माना तो उसने उसे घर से निकाल दिया। वह (पुत्र) चोरपल्ली में रहते-रहते ५०० चोरों का स्वामी बन गया । एक बार उसने अपने ही गाँव में डाका डाला और उस कामासक्त कन्या को ले आया । वह उन सबकी पत्नी बनी । एक दिन उस चोर ने उसकी सुविधा के लिए दूसरी पत्नी को ले आये । उसे अपने विषयसुख में रुकावट समझकर उसने कुँए में गिरा दिया । पल्लीपति को जब इस बात का पता चला तो उसे अपने बहन की शंका हुई । शंका समाधान के लिए बह भगवान महावीर के पास गया और वंदन करके पूछा - "भगवान ! या सा सा सेति" भगवान ने कहा - "सा सा सेति" यह सुनकर उसे वैराग्य हो गया । भगवान महावीर ने गौतम स्वामी के पूछने पर उपरोक्त पहेली को समझाया – उन्होंने कहा – पल्लीपतिने पूछा - जो मेरी बहन थी वह वही है ।
तब मैंने कहा - हाँ जो तेरी बहन थी वही तेरी पत्नी है । १०. मृगावती
कौशाम्बी नगरी में भगवान महावीर पधारे । उनके वन्दनार्थ सभी देव और असुरों सहित सूर्य और चन्द्र भी आये । आर्या चन्दनबाला भी मृगावती को साथ लेकर उनके वन्दनार्थ आयीं । चन्दनबाला आदि साध्वियां प्रभु को वंदन कर वापस उपाश्रय में आ गयीं परन्तु मृगावती सूर्य के प्रकाश के कारण दिन जानकर काफ़ी रात तक समवसरण में बैठी रही । सूर्य और चन्द्र के वापस चले जाने के बाद अन्धकार फैल गया, तब मृगावती जल्दी से उठकर उपाश्रय में आयी । चन्दनबाला ने उसे बहुत उपालम्भ दिया । मृगावती ने बहुत पश्चात्ताप किया और अपने विलम्ब का कारण
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