SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 57
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दिया और पूर्वजन्म के नियाण की बात बताई और आर्यकर्म करने को कहा – राजा ने मुनि की बात न मानकर उसको ही घर चलने को कहा । मुनि ने उसे बहुत समझाया पर उसे वैराग्य नहीं उत्पन्न हुआ । अन्त में हारकर चित्रमुनि वहाँ से दूसरी जगह विहार करने चले गये और केवली होकर मोक्ष पाये । ब्रह्मदत्त पूर्वभव में नियाण करने से सातवें नरक का अधिकारी बना" । ८. उदायीनृप के हत्यारे का दृष्टान्त पाटलीपुत्र नगर में कोणिक राजा का पुत्र उदायी राजा राज्य करता था । उसने किसी का राज्य छीन लिया था । उसके वैरी राजा ने अपनी सभा में घोषणा करवाई कि - "जो उदायी राजा को मारकर आयेगा, उसे मैं इच्छानुसार इनाम दूंगा।" यह सुनकर कोई नौकर उदायी को मारने के लिए पाटलिपुत्र आया । अनेक उपाय करने के बावजूद भी जब वह सफल नहीं हुआ तो उसने राजा को विश्वास में लेने के लिए धर्मगुरु से मुनि दीक्षा ग्रहण कर ली । धर्मगुरु को राजा बहुत मानता था । उसने आचार्य आदि के मन को अपने विनीत गुणों से वशीभूत कर लिया । उदायी राजा अष्टमी और चतुर्दशी के दिन एक अहोरात्र भर का पौषध करता था । आचार्य उसे धर्मोपदेश देने के लिए निकटवर्ती पौधशाला में जाते थे । एक दिन नवदीक्षित ने भी साथ जाने के लिए गुरुजी से कहा । लेकिन गुरुजी ने उसे अपने साथ नहीं लिया । इसी तरह वह बारह वर्ष तक साथ जाने का प्रयत्न करता रहा, लेकिन गुरुजी ने उसे नहीं जाने दिया । एक बार उसे गुरुजी ने अपने साथ ले ही लिया । रात को जब आचार्य और राजा निद्राधीन हो गये तब उस कुशिष्य ने राजा के गले पर छूरी फेर दी और भाग गया५ । राजा के शरीर का खून आचार्य के संथारे तक पहुँचा जिससे वे जग गये। वे परिस्थिति को भाँप गये और कुशिष्य को दीक्षा देने के प्रायश्चित्त के लिए उसी छूरी से अपने को मार डाला और वे दोनों मरकर देव बने । उस नौकर ने अपने राजा से जाकर अपने साहस की सारी बातें बतायीं लेकिन राजा को उससे धृणा हो गयी और उसने उसे देश निकाला दे दिया । ९. जासा सासा का दृष्टान्त वसन्तपुरनगर में अनंगसेन नामक एक स्त्रीलंपट सुनार रहता था । उसकी ५२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001706
Book TitleUpdeshmala
Original Sutra AuthorDharmdas Gani
AuthorDinanath Sharma
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2000
Total Pages228
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, literature, & Sermon
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy