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________________ विराम से इन्कार कर दिया । फिर उन्होंने बाहुबलि से युद्ध विराम की बात कही लेकिन उसने भी इन्कार कर दिया । तब इन्द्र ने दोनों भाइयों को आपस में लड़ने को कहा सेनाओं से नहीं । दोनों तैयार हो गये । भरत को पाँच प्रकार के युद्ध में पराजय मिली, उसने नाराज होकर चक्र छोड़ा । लेकिन सगोत्र पर चक्र नहीं चलता, इसलिए चक्र प्रदक्षिणा करके वापस चला गया । बाहुबलि को उज्वल विचार आया। उसने प्रव्रज्या ले ली। ६. सनत्कुमार का दृष्टान्त सनत्कुमार चक्रवर्ती छह खण्ड के साम्राज्य का अधिपति हस्तिनापुर नगर में रहता था । एक दिन इन्द्र ने उसके रूप की प्रशंसा देवताओं से की । दो देवता वृद्ध ब्राह्मण का रूप बनाकर उसे देखने गये । वे उसे आभूषणरहित देखकर ही मुग्ध हो गये और सिर हिलाने लगे । सनत्कुमार स्वयं अपनी प्रशंसा उनसे करने लगा । वे ब्राह्मण सनत्कुमार की बात सुनकर चले गये और फिर जब वह आभूषण धारण कर राजसभा में आया तब आये । वे राजा का ही हीन रूप देखकर दुःख व्यक्त करने लगे । चक्री के हीनता का प्रमाण पूछने पर उन दोनों ने कहा – “चक्रवर्ती ! ताम्बूल का पीक जमीन पर थूको । यदि उस पर मक्खी बैठे और मर जाय तो समझना आपका शरीर विषमय है और उसमें सात महारोग उत्पन्न हो गये हैं ।" ___ ब्राह्मणों की बात सुनकर चक्री को शरीर की अनित्यता पर विश्वास हो गया। उन्होंने संयम धर्म स्वीकार कर लिया और विकृतिजनक पदार्थों का त्याग कर रोगों से पीड़ित होने पर भी मायारहित होकर भूमण्डल पर विचरण करने लगे । इन्द्र ने अपने दरबार में फिर उनकी प्रशंसा की । फिर दो देवों ने ब्राह्मण के रूप में सनत्कुमार के पास आकर उसका इलाज करने को कहा । मुनि ने अनित्य शरीर के रोग का इलाज करने के अलावा कर्मरोग का इलाज करने को कहा । दोनों देव आश्चर्यचकित हो गये और अपना असली रूप बतलाकर देवलोक वापस लौट गये । मुनि सनत्कुमार भी सात सौ वर्ष तक रोग पीड़ा का अनुभव कर एक लाख वर्ष तक निर्दोष चारित्र का पालन कर तीसरे देवलोक में उत्पन्न हुए । उसके बाद महाविदेह में मनुष्यजन्म प्राप्त कर मोक्ष प्राप्त करेंगे५२ । ७. ब्रह्मदत्त चक्री किसी गाँव में सरल स्वभावी चार म्वाले रहते थे । गर्मी की दोपहरी में जब Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001706
Book TitleUpdeshmala
Original Sutra AuthorDharmdas Gani
AuthorDinanath Sharma
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2000
Total Pages228
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, literature, & Sermon
File Size11 MB
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