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________________ ४. प्रसन्नचन्द्र राजर्षि पोतनपुर में प्रसन्नचन्द्र नामक धार्मिक राजा था" । एक समय सध्या की क्षणिक लालिमा को देखकर वह संसार की क्षण भंगुरता का विचार करने लगा और वह अपने बालपुत्र को गद्दी पर बिठाकर प्रब्रजित हो गया । एक बार महावीर स्वामी उस नगरी में पहुँचे । देवों ने समवसरण की रचना की । राजा श्रेणिक भगवान् का आगमन जानकर उनकी वन्दना के लिए आया । दुर्मुख ने प्रसन्नचन्द्र की सबके सामने शिकायत की इस राजा ने अपने पाँच वर्षीय अबोध पुत्र को गद्दी पर बिठाकर प्रव्रज्या ग्रहण की है । शत्रुओं ने इसके राज्य को हड़पने के लिए आक्रमण कर दिया है। यह सुनकर राजर्षि को क्रोध आया और उसने मानसिक युद्ध करना शुरू कर दिया राजा श्रेणिक प्रसन्नचन्द्र की वन्दनादि करके भगवान् महावीर की वन्दना करने चल दिए । उपदेशपूर्ण होने पर राजा श्रेणिक ने भगवान् से प्रसन्नचन्द्र के विषय में अनेक प्रश्न किये । भगवान् ने उनके प्रत्येक प्रश्न का जवाब देते हुए प्रसन्नचन्द्र को केवलज्ञान होने की बात बताई । भगवान् से आश्वस्त होकर राजा अपने स्थान को लौट गया । प्रसन्नचन्द्र राजर्षि बहुत समय तक केवली अवस्था में रहकर अन्तत: मोक्ष को प्राप्त हुए । ५. बाहुबलि का दृष्टान्त छ: खण्डों पर विजय प्राप्त कर लेने के बाद भरत ने ९८ भाइयों को बुलाया ( बाहुबलि को छोड़कर) सभी भाईयों ने राज्य छीन जाने के भय से पिताजी ( ऋषभदेव ) को इस बात से अवगत कराया । ऋषभदेवजी ने राज्यलक्ष्मी की क्षणभंगुरता का उपदेश दिया । उपदेश सुनकर सभी भाइयों ने दीक्षा ग्रहण कर ली । भरत ने उनके पुत्रों को उनका राज्य सौंप दिया । बाहुबलि पराजित नहीं था, इसलिए चक्ररत्न आयुधशाला में प्रवेश नहीं कर रहा था । सुषेण सेनापति ने यह बात भरत को बताई । भरत ने बाहुबलि को बुलाने के लिए दूत भेजा, परन्तु उसने आने से इन्कार कर दिया । इस पर भरत ने बाहुबलि पर चढ़ाई कर दी । बारह वर्ष तक युद्ध चलता रहा । इन्द्र ने युद्ध विराम के लिए भरत से कहा लेकिन उसने चक्ररत्न के आयुधशाला में प्रवेश न करने के कारण युद्ध Jain Education International ४८ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001706
Book TitleUpdeshmala
Original Sutra AuthorDharmdas Gani
AuthorDinanath Sharma
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2000
Total Pages228
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, literature, & Sermon
File Size11 MB
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