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________________ से निकटवर्ती उपाश्रय में वंदन करने जा रही है । इस प्रकार वृद्ध पुरुष चन्दनबाला का वृत्तान्त सुनकर बहुत खुश हुआ । वह भिखारी भी उस उपाश्रय में गया । गुरु महाराज अपने ज्ञान से जाने गये कि वह भिखारी मुक्ति पाने वाला है अत: उसे उपदेश दिये जिससे उसने दीक्षा ग्रहण कर ली । चारित्र दृढ़ करने के लिए उसे साधू साध्वियों के उपाश्रय में भेजा गया । वह अकेला ही चन्दनबाला के उपाश्रय में गया । चन्दनबाला ने उसका बहुत सम्मान किया जिससे उसको साधुओं के विनय की महानता का ज्ञान हुआ । चन्दनवाला ने उसको संघ की महत्ता तथा साधु जीवन की भव्यमहिमा को समझाया जिससे वह संयम में स्थिर हो गया ।। मृगावती उसकी मुख्य शिष्या थी । उसको गलत ढंग से डाँटने से चन्दनवाला को पश्चात्ताप हुआ जो उसके केवलज्ञान का कारण बना । २. सम्बाधन राजा ___ सम्बाधन वाराणसी का राजा था । उसकी एक हजार रानियाँ थीं लेकिन किसी को पुत्र नहीं था । उसने पुत्र प्राप्ति का हर सम्भव प्रयास किया । संयोगवश एक बार उसकी पटरानी को गर्भ रह गया । पुत्रोत्पत्ति के पहले राजा चल बसा । सूना राज्य देखकर शत्रुओं ने उस पर हमला किया लेकिन नैमित्तिक के कहने पर कि पटरानी के गर्भ के प्रभाव से उन्हें हारना पड़ेगा, वे वापस लौट गये । गर्भकाल पूर्ण होने पर उसका जन्म हुआ, उसका नाम अंगवीर्य रखा गया। ३. मरत चक्रवर्ती ___ अयोध्यानगरी में ऋषभदेव जी के बड़े पुत्र" भरत प्रथम चक्रवर्ती २ बन गये। उनके पिता ऋषभदेव जी ने संयम ग्रहण के समय अपने सौ पुत्रों को उनके नाम से अंकित देश दे दिये । एक समय यमक और समक दो पुरुष बधाई देने के लिए उसके दरबार में मये । यमक ने ऋषभदेव के केवलज्ञान की सूचना दी और समक ने शस्त्रागार में चक्ररत्न उत्पन्न होने की। भरत अपनी दादीमाँ मरुदेवी को साथ लेकर पिताश्री की वन्दना करने चल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001706
Book TitleUpdeshmala
Original Sutra AuthorDharmdas Gani
AuthorDinanath Sharma
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2000
Total Pages228
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, literature, & Sermon
File Size11 MB
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