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________________ १. चन्दनबाला जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में कौशाम्बी नाम की नगरी थी, एक बार चन्दनबाला अपने अनुयाइयों के साथ कौशाम्बी के चोराहे से गुजर रही थी । काकन्दी नगरी से आया एक दरिद्र व्यक्ति ने उसे सड़क पर आते हुए देखा । उस व्यक्तिने चन्दनबाला के पास खड़े एक वृद्ध से चन्दनबाला के बारे में पूछा । उसने बताया चम्पानगरी में दधिवाहन नामक राजा था। उसकी वसुमति नाम की पुत्री थी । एक समय किसी वैमनस्य के कारण कौशाम्बी के राजा शतानीक ने विशाल सेना के साथ दधिवाहन पर आक्रमण कर दिया । घोर युद्ध के पश्चात् पराजय की आशंका से दधिवाहन मैदान छोड़कर भाग गया । शतानीक की सेना ने चम्पानगरी को खूब लूटा और वसुमति को किसी पुरुष ने अपहृत कर लिया" । उसे एक सेठ के हाथ बेच दिया । एक दिन वसुमति सेठ के चरण धो रही थी । सेठ ने उसके केशकलापों को पकड़ रखा था ताकि वे जमीन पर न जायँ । यह देखकर मूला सेठानी को उनके एक दूसरे का प्रेमी होने की शंका हुई और उसने वसुमति को घर से बाहर निकालने की ठान ली । एक दिन सेठ की अनुपस्थिति में सेठानी ने वसुमति के बाल मुड़वाकर हाथपैर बाँधकर तलघर में डाल दिया । सेठ यह सब जानकर बहुत दुःखी हुआ । उसी समय भगवान् महावीर अपने कर्मों का क्षय करने के लिए वसुमति जैसी हालतवाली लड़की की खोज में वहाँ आये । भगवान् को देखकर वसुमति धन्य हो गयी और उसने अपने हाथ से उड़द के बाकुले भिक्षा के रूप में दिये । तत्पश्चात् वसुमति के सभी बन्धन टूट गये और पाँच दिव्य प्रकट हुए । देवताओं ने वसुमति का नाम चन्दनबाला रखा । इन्द्र ने शतानीक राजा को चन्दनबाला का परिचय दिया और उसकी रक्षा करने को कहा । जब भगवान महावीर को केवलज्ञान प्राप्त हुआ तब चन्दनबाला ने उनसे साध्वी दीक्षा ग्रहण की और उनकी प्रथम शिष्या हुई । वही चन्दनबाला सुस्थिताचार्य Jain Education International ४५ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001706
Book TitleUpdeshmala
Original Sutra AuthorDharmdas Gani
AuthorDinanath Sharma
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2000
Total Pages228
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, literature, & Sermon
File Size11 MB
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