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________________ मे १४.२ प्रतिशत । इसके लिए अन्य रूप ते, तव तुज्झ तुज्झ, तुम, तुहं तुह हैं । पूर्वकालिक और हेत्वर्थ कृदन्तों का एक दूसरे के लिए प्रयोग प्राचीन नहीं है । इस प्रकार के प्रयोग परवर्ती काल में प्रचलित हुए हैं । उनका एक दूसरे के लिए प्रयोग वसुदेवहिण्डी, पउमचरियं और उपदेशमाला में इस प्रकार मिलते हैं उपदेशमाला में पूर्वकालिक कृदन्त के लिए हेत्वर्थ प्रत्यय ( उ ) का प्रयोग वसुदेवहिण्डी से पांच गुना अधिक है परन्तु पउमचरियं में उसका प्रयोग उपदेशमाला से अधिक हुआ है । उपदेशमाला में हेत्वर्थ कृदन्त के लिए पूर्वकालिक कृदन्त का प्रयोग भी वसुदेवहिण्डी से पाँच गुना और पउमचरियं से तीन गुना अधिक है । ३२ इस प्रकार उपदेशमाला की भाषा वसुदेवहिण्डी की भाषा से थोड़ी परवर्ती काल की लगती है और पउमचरियं की भाषा के लगभग समान है । वसुदेवहिण्डी का समय पाँचवीं शताब्दी और पउमचरियं का भी पाँचवी शताब्दी । लेकिन डॉ० के० आर. चन्द्रा ने भाषा के आधार पर वसुदेवहिण्डी को पउमचरियं से पहले की रचना मानी है । इस दृष्टि से भी उपदेशमाला पाँचवीं सदी के पहले नहीं जाती है । दासान्त नामों की परम्परा (जैसे जिनदास, संघदास आदि) भी छठीं -सातवीं सदी में प्रचलित हुई मालूम होती है । अत: इन सभी दृष्टियों से इसका समय ईसा की छठीं सातवीं शताब्दी के लगभग ही ठहरता है । विषयवस्तुगत अध्ययन गुरुमहिमा : ग्रन्थारम्भ में भगवान महावीर और ऋषभदेव की वन्दना के पश्चात् आचार्य धर्मदासमणि गुरु महिमा का वर्णन करते हैं । जिस प्रकार राजा का आदेश शिरोधार्य होता है उसी प्रकार गुरुजनों के उपदेश को भी शिरोमान्य रखकर सुनना चाहिए, क्योंकि गुरु सर्वोपरि होता है । गुरु बुद्धिमान् आगमवद् धीर गम्भीर और उपदेशक होता है । वह अपरिश्रावी होता है अर्थात् वह किसी बात को किसी और से नहीं कहता । गुरु पर सन्देह करनेवाला पश्चात्ताप करता है । गुरुवचन को विशुद्धभाव से सुननेवाला सुखी होता है । ( ८-११) श्रमण प्रधानता : गुरुमहिमावर्णन के बाद श्रमण की प्रधानता बतलाते हुए आर्या चन्दना का उदाहरण प्रस्तुत किया गया हैं जिन्होंने वरिष्ठ साध्वी होने के बावजूद एक दिन के दिक्षित साधू दमक की वन्दना की । इसी प्रकार के अनेक दृष्टान्त साधु प्रधानता के लिए प्रस्तुत किये गये हैं । (१२-१८) असंयमी के लिए शिक्षा है की यदि वह वेशधारी साधू है और संयमपालन ४१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001706
Book TitleUpdeshmala
Original Sutra AuthorDharmdas Gani
AuthorDinanath Sharma
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2000
Total Pages228
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, literature, & Sermon
File Size11 MB
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