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________________ प्रत्यय का प्रयोग इस प्रकार है वसुदेवहिण्डी (प्रतिशत) पउमचरियं (प्रतिशत) उपदेशमाला (प्रतिशत) ० ० ऊण (उणं) ७६ ७१.८ ७३.६ हेत्वर्थ उं प्रत्यय १५.३ हेत्वर्थ कृदन्त के लिए पूर्वकालिक कृदन्त का प्रयोग तीनों ग्रन्थों में निम्नवत् पाया जाता है वसुदेवहिण्डी (प्रतिशत) पउमचरियं (प्रतिशत) उपदेशमाला (प्रतिशत) ० ० पूर्वकालिक प्रत्यय (ऊण (ऊणं) त्ता इस प्रकार सप्तमी की परवर्ती काल की विभक्ति -म्मि का प्रयोग वसुदेवहिण्डी से उपदेशमाला में अधिक है । सर्वनाम अस्मत् तृतीया एकवचन के रूप मए और मे का प्रयोग भी वसुदेवहिण्डी से उपदेशमाला में अधिक है तथा अस्मत् के षष्ठी एकवचन के परवर्ती रूप “मज्झ" का प्रयोग उपदेशमाला में वसुदेवहिण्डी की तुलना में तीन गुने से भी अधिक बार हुआ है । युष्मत् षष्ठी एकवचन के लिए उपदेशमाला में केवल "तुह" का ही प्रयोग है । जबकि वसुदेवहिण्डी में यह कुल प्रयोगों का ७.१ प्रतिशत है और पउमचरियं ४० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001706
Book TitleUpdeshmala
Original Sutra AuthorDharmdas Gani
AuthorDinanath Sharma
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2000
Total Pages228
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, literature, & Sermon
File Size11 MB
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