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उपरोक्त तथ्यों से यह तो निश्चितरूप से स्पष्ट हो जाता है कि धर्मदासगणि भ. महावीर के समय के नहीं थे और उनकी पूर्व सीमा ई. स. प्रथम शताब्दी भी निश्चित हो जाती है ।
उपदेशमाला पर सर्वप्रथम वृत्ति जयकीर्ति की संवत् ९१३ की मिलती है। अत: यह उनकी उत्तर सीमा हई । इस प्रकार धर्मदासगणि पहली और नौंवी सदी के बीच के होने चाहिए । लगभग ९०० वर्ष के इस अन्तर को कम करने के लिए कोई अन्य प्रमाण उपलब्ध नहीं हुआ है । अत: इसकी भाषा का विश्लेषण कुछ अंश में उपयोगी हो सकता हैभाषाकीय विश्लेषण
__ वसुदेवहिण्डी और पउमचरियं ईसा के प्रारम्भिक शताब्दियों की रचनायें मानी जाती हैं । अत: उनकी भाषा के स्वरूप के साथ उपदेशमाला की भाषा का तुलनात्मक अध्ययन उसकी (उ० मा.) रचना के समय को निर्धारित करने में कछ अंश में सहायक हो सके, इस दृष्टि से यहाँ पर कुछ मुद्दे प्रस्तुत किये जा रहे हैं
डॉ. के. आर. चन्द्रा२९ ने वसुदेवहिण्डी और पउमचरियं की प्राकृत भाषा का एक नमूने के रूप में तुलनात्मक अध्ययन किया है । उसी को आधार बनाकर उपदेशमाला के साथ उनका तुलनात्मक अध्ययन नीचे दिया जा रहा है
तीनों ग्रन्थों का तुलनात्मक अध्ययन ध्वनि परिवर्तन
वसुदेवहिण्डी, पउमचरियं और उपदेशमाला में मध्यवर्ती अल्पप्राण व्यंजनों की यथावत् स्थिति, उनका घोषीकरण और उनका लोप इस प्रकार है
वसुदेवहिण्डी पउमचरियं उपदेशमाला
(प्रतिशत) (प्रतिशत) (प्रतिशत) यथावत् ३४.७ ३२.२
२०.७ घोषीकरण
१८.८ लोप
५७.४ द्वित्व
६.२
३७
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