________________
Instructions, a didactic poem in 540 prakrit Stanzas, containing moral instructions for layman and monks by Dharmadasa who according to tradition is said to be a younger contemporary of Mahavira. This is scarcely possible, as the language of Uvaesamala corresponds to the later Jaina Maharastri."
इसी प्रकार मुनि जिनविजय जी कहते हैं " ग्रन्थना केटलाक व्याख्याकारोए तो तेमने खास भगवान् महावीर स्वामिना ज एक हस्तदीक्षित शिष्य तरीके उल्लेख्या छे अने ए रीते ए प्रकरणनी रचना महावीर स्वामीना समयमां ज थएली होवानी मान्यता प्रकट करी छे परन्तु ऐतिहासिक दृष्टिए तेम ज प्राकृत भाषाना स्वरूपना तुलनात्मक वगेरे दृष्टिए ए ग्रन्थ तेटलो प्राचीन तो सिद्ध नथी थतो कारण के एमा भगवान् महावीरना निर्वाण बाद केटलाय सैका पछी थएला आर्यवज्र आदि आचार्योनो पण प्रकटरूपे उल्लेख थलो मळे छे तेथी इतिहासज्ञोनी दृष्टिए ए ग्रन्थ विक्रमना ४था ५मां शतक दरम्यान के तेथीय पछीना एकाध सैकामां रचाएलो सिद्ध थाय छे. २२
२२११
डॉ. जगदीश चन्द्र जैन का भी यही मन्तव्य है - "जैन परम्परा के अनुसार धर्मदासगणि महावीर के समकालीन बताये गये हैं लेकिन वे ई० स० की चौथी पाँचवीं शताब्दी के विद्वान् जान पड़ते हैं
१३
।
-
अब उपदेशमाला में उल्लिखित कुछ नामों पर विचार किया जायगा जिससे यह स्पष्ट हो जायगा कि धर्मदासगणि भ० महावीर के काल के थे या नहीं । ग्रन्थ में कालकाचार्य और उनके भानजे दत्त नाम के ब्राह्मण राजा का उल्लेख है । कालकाचार्य नाम के चार आचार्य हुए हैं । उपरोक्त कालकाचार्य प्रथम कालकाचार्य थे - ऐसा मुनि श्री कल्याणविजय जी का मानना है । उन कालकाचार्य का समय वीरनिर्वाण ३०० से ३३५ तक माना गया है : ( अर्थात् ई० पू० लगभग तीसरी शताब्दी) ।
• કૈ
दूसरा उल्लेख मंगू आचार्य का मिलता जो " वलभी युगप्रधान पट्टावली" के अनुसार रेवतीमित्र के उत्तरवर्ती हैं २५ । रेवतीमित्र का समय ईसापूर्व दूसरी सदी है । २६ अत: मंगू ईसापूर्व दूसरी सदी के बाद के ठहरते हैं ।
Jain Education International
तीसरा उल्लेख वज्रस्वामी का है । उनका समय आवश्यक निर्युक्ति" के अनुसार वी० नि० ४९६ से ५८४ तक है ( अर्थात् ईसा की प्रथम शताब्दी) ।
३६
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org