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ऐसे ही प्रयोग वसुदेवहिण्डी और पउमरियं में भी क्रमश: ६% और १०% मात्रा में मिलते हैं।
छन्द योजना उपदेशमाला में छ: गाथाओं को छोड़कर शेष सभी गाथाएँ गाथा छन्द में हैं। छ: गाथाओं में चार (१३९, १८४, १८५, ३४१) अनुष्टुप् छन्द में हैं, एक (२०८) रथोद्धता और एक (४२६) विपरीत-आख्यानकी छन्द में है ।
गाथा छन्द
इसकी परिभाषा इस प्रकार है – गौ षष्ठो जोन्लौ वा पूर्वेऽर्धेऽपरे षष्ठो लार्या गाथा'५ । इसे जाति या आर्या भी कहते हैं । इसके गण मात्रानुसार नियमित किये जाते हैं । इसमें चार मात्राओं का एक गण होता है । गाथा के प्रथम पाद में तीस मात्राएँ होती हैं और द्वितीय पाद में सत्ताइस मात्राएँ होती हैं । प्रथम पाद का छठवां गण या तो जगण होता है या चारों लघु मात्राएँ । दूसरे पाद का छठां गण एक लघु मात्रा का होता है । दोनों पादों के अन्त में दो-दो मात्राओं के तीन गण होते हैं ।
उदाहरण - नमिऊण जिणवरिंदे इंदनरिंदच्चिए तिलो यगुरू ।
उवएसमालमिणमो वुच्छामि गुरूवएसेणं ।। । ।। अनुष्टुप् छन्द
श्लोके षष्ठं गुरु ज्ञेयं सर्वत्र लघु पंचमम् ।
द्विचतुः पादयोईस्वं सप्तमं दीर्घमन्ययोः ।।१६
यह आठ अक्षरोंवाला समचतुष्पद है । इसके सभी पादों में छठां अक्षर गुरू तथा पाँचवां अक्षर लघु होता है । सातवाँ अक्षर दूसरे तथा चौथे पाद में हस्व होता है और पहले और तीसरे पाद में दीर्घ होता है, यथा
पत्थ रे णा ह ओ की वो । प त्य रं ड कु मि च्छ इ ।।
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