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आज्ञार्य - अन्य पुरुष एकवचन में -उ प्रत्यय प्रायः प्रयुक्त है - कीरउ - क्रियताम् (४८१)
मध्यम पुरुष एकवचन में -हि प्रत्यय और प्रत्ययहीन प्रयोग दोनों समान मात्रा में उपलब्ध होते हैं, जैसे
भणाहि - भण (४२९) जाण - जानीहि (३९३, ४५२, ५०५) इत्यादि
क्रियातिपत्ति में अन्य पुरुष एकवचन के लिए -अंतो और बहुवचन के लिएअंता प्रत्यय का प्रयोग दृष्टिगोचर होता है, जैसे(१) करेंतो - अकरिष्यत् (१०९, ४५९) (२) पावेंता - अप्राप्स्यन् (२८१) (३) एकवचन के लिए -अंतो के बदले नपुं० -अंतं प्रत्यय भी एक बार प्रयुक्त है
हुंत - अभविष्यत् (१०९) उपरोक्त उदाहरण उ. मा. की निम्नलिखित गाथाओं में प्रयुक्त हैं(१) आजीवग- गणनेया रजसिरिं पयहिऊण जमाली ।
हियमप्पणो करेंतो न य वयणिजे इह पडतो ।।४५९।। (२) तिरिया-कुसंकुसारा निवायवहबंधभारणसयाइं ।
न वि इहयं पाता परत्थ जइ नियमिया होता ।।२८१ ।। (३) जं तं कयं पुरा पूरणेण अद्रुक्करं चिरं कालं ।
जइ तं दयावरो इह करेंतो तो सफलयं इंतं ।।१०९।। कृदन्त
पूर्वकालिक कृदन्त के प्रत्ययों में सामान्य रूप से -ऊण और -ऊणं प्रत्यय ४४ बार प्रयुक्त हुआ है । इनके सिवाय कुछ अन्य प्रत्यय निम्नवत् हैं
(१) -इत्तु = आयणित्तु = आजाणित्तुं - आज्ञाय (२१४) (२) -इत्ता = भणित्ता - भणित्वा (५०७) (३) -इया = अविकत्तिया - अविकर्त्य (११२)
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