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________________ संज्ञा प्रथमा विभक्ति :- पुंलिंग - अकारान्त प्रथमा, एक वचन के लिए सामान्यतया - ओ विभक्ति का ही प्रयोग हुआ है लेकिन कुछ शब्दों में निम्नलिखित विभक्तियाँ पायी जाती हैं ● ए = ९ बार उदाहरण - उज्जुयसीले (उद्यतशील: ) २५७ अगीए ( अगीत: ) ३९५ रायणिए (रात्निक : ) ३९५ उ = कारउत्ति (कारक इति) ६६ यहाँ - ओ का ही - उ हुआ है क्योंकि संयुक्त से पहले आता है । एकवचन अकारान्त एकवचन के लिए प्राय: नपुंसकलिंग विभक्ति प्रयुक्त हुई है, लेकिन दो शब्दों में नपुंसकलिंग के लिए - ओ विभक्ति का प्रयोग देखा जाता है, यथा अप्पफलो (अल्पफलम् ) ८१.८२. - रूप परिवर्तन - बहुवचन - बहुवचन में सामान्यतया - आणि और -आई विभक्तियाँ पायी जाती हैं जो कि कुल प्रयोग का क्रमशः २८.६% और ५८.९% प्रतिशत है । एक आइ (खेत्ताइ ( क्षेत्राणि) ४९७) प्राप्त होती है जिससे उपदेशमाला पर परवर्ती काल का प्रभाव प्रकट होता है । विभक्ति द्वितीया विभक्ति इसमें पुं०, स्त्री में सामान्य विभक्तियों का प्रयोग हुआ है नपुं० द्वि० ब० व० के लिए भी सामान्यतया - आणि और आई विभक्तियां प्रयुक्त हैं लेकिन कुछ विशेष विभक्तियां इस प्रकार हैं Jain Education International - - ए अंतरे ( अन्तराणि) ३३७, ३३७ = उवगरणे ( उपकरणानि ) ४४७ २४ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001706
Book TitleUpdeshmala
Original Sutra AuthorDharmdas Gani
AuthorDinanath Sharma
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2000
Total Pages228
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, literature, & Sermon
File Size11 MB
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