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________________ मध्यवर्ती व्यंजन मध्यवर्ती अल्पप्राण एवं महाप्राण व्यंजनों के कुल प्रयोगों का २१.६% यथावत है; १६.६% घोष; ६१.६% लोप एवं . २% द्वित्व हुआ है । घोष होनेवाले व्यंजनों में केवल क और प हैं । अन्य किसी भी अघोष व्यंजन चाहे वह अल्पप्राण हो या महाप्राण, का घोषीकरण नहीं हुआ है । क का उसके कुल प्रयोगों का ३५.३% घोषीकरण हुआ है और प का उसके कुल प्रयोगों का ९३.७% घोषीकरण पाया जाता हैं' । क के घोषीकरण के इस प्रमाण को देखते हुए ऐसा प्रतीत होता है कि उपदेशमाला पर एक जैनकृति होने के कारण अर्धमागधी का प्रभाव है क्योंकि अजैन महाराष्ट्री ग्रन्थों में घोषीकरण इतने प्रमाण में नहीं मिलता । यथावत् घोष* लोप द्वित्व अल्पप्राण ध्वनि परिवर्तन तालिका नं. १ सम्पूर्ण अल्पप्राण एवं महाप्राण व्यंजनों के परिवर्तन की स्थिति कुल प्रयोग ५४४ Jain Education International ४१७ १५५० ६ * एक भी महाप्राण का घोषीकरण नहीं हुआ है I मध्ववर्ती अल्पप्राण व्यंजनों (क, ग, च, ज, त, द, प, य, व ) में जो व्यंजन अ आ स्वरयुक्त हैं और उनके पहले भी अ आ ही स्वर हैं वे व्यंजन यदि लुप्त हुए हैं तो उन सभी अवशिष्ट अ आ की "य" श्रुति हुई है । जो व्यजन अ आ स्वरयुक्त तो हैं लेकिन उनके पहलेवाला स्वर अ आ के अतिरिक्त इ, ई, उ, ऊ, ए, ओ में से कोई एक है उनका भी यदि लोप हुआ है तो प्रतिशत २१.६% १६.६% ६१.६% .२% २१ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001706
Book TitleUpdeshmala
Original Sutra AuthorDharmdas Gani
AuthorDinanath Sharma
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2000
Total Pages228
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, literature, & Sermon
File Size11 MB
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