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________________ कहीं उसके भी पाठ अनुपयुक्त होने के कारण छोड़ दिये गये हैं और उनकी जगह पर दूसरी प्रतों के पाठ स्वीकृत किये गये हैं । कहीं-कहीं कुछ प्रतों के पाठ या तो छिन्न हैं या हैं ही नहीं । उन्हें "क्षत" से दिखाया गया है । इसमें हेयोपादेयावृत्ति और दोघट्टिवृत्ति के भी पाठभेद लिये गये हैं । उपदेशमाला में गाथाओं की संख्या उपदेशमाला की गाथाओं की संख्या के विषय में निश्चितरूप से कुछ कहना कठिन है, क्योंकि भिन्न-भिन्न हस्तप्रतों में उनकी भिन्न-भिन्न संख्या है । जैसलमेर भण्डार की ताड़पत्र की प्रत में (जो मेरे द्वारा उपयोग में ली गयी ताड़पत्रों की प्रतों में सर्वाधिक प्राचीन है ) ५४२ गाथाएँ हैं । खम्भात भण्डार की उपदेशमाला की प्राचीनतम हस्तप्रत (उपयोग में ली गयी प्रतों में यह द्वितीय प्राचीनतम हस्तप्रत है ) में ५३९ गाथाएँ हैं । शेष सभी में ५४४ गाथाएँ हैं । ५४२वीं गाथा का दूसरा पाद इस प्रकार है " गाहाणं सव्वाणं पंचसया चेव चालीसा ।। " सिद्धर्षिगण ने अपनी हेयोपादेयावृत्ति में १ से ५३९ तक की गाथाओं की ही व्याख्या की है । रत्नप्रभसूरि ने अपनी दोघट्टीवृत्ति में ५३९ गाथाओं की व्याख्या करने के बाद शेष चार गाथाओं ( ५४३ तक) को धर्मदासगणि द्वारा अपने शिष्यों को कही गई उपदेशमाला की प्रशस्ति कहा है । जहाँ तक विषयवस्तु का सम्बन्ध है वह केवल ५३९ गाथा तक है उसके बाद ५४०वीं गाथा उपसंहार के रूप में है । इसके बाद की गाथाओं का कोई औचित्य नहीं लगता है, वे प्रक्षिप्त-सी लगती हैं । अत: उपदेशमाला की ५४० गाथाएँ ही मूलत: होनी चाहिए । भाषाशास्त्रीय अध्ययन भाषाशास्त्र के मुख्य मुद्दों के अनुसार ही उपदेशमाला का भाषाकीय अध्ययन प्रस्तुत किया गया है जिनमें मुख्यतः ध्वनि परिवर्तन और नाम एवं क्रियापदों की रूपरचना पर विशेष बल दिया गया है । Jain Education International २० For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001706
Book TitleUpdeshmala
Original Sutra AuthorDharmdas Gani
AuthorDinanath Sharma
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2000
Total Pages228
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, literature, & Sermon
File Size11 MB
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