________________
बरोडा १९३७, भाग १, सम्पादक : लालचन्द भगवानदास गांधी । प्रति नं. २०६(२), पृ. २३, लम्बाई १४ इंच, चौडाई २ इंच । पत्र संख्या १६(३१४६) । प्रत्येक पत्र में ४-५ पंक्तियाँ और प्रत्येक पंक्ति में २६ अक्षर । लेखन समय वि० सं० १३२६ । गाथाएँ ५४४ । यह प्रत पाटण भण्डारों में प्राप्त होनेवाली उपदेशमाला की सभी हस्तप्रतों में सर्वाधिक प्राचीन है । वैसे इसके पाठ
बहुत प्राचीन नहीं हैं फिर भी इसकी विश्वसनीयता बनी हुई है । ६. पा २ : “ए डिस्क्रीप्टिव केटलोग ऑफ पाटण मेन्युस्क्रीप्ट्स इन द जैन भण्डार्स
ऐट पत्तण" नं. १, संघवी पाडा, प्रकाशक : गायकवाड़ ओरिएण्टल इन्स्टीट्यूट, बरोडा १९३७, भाग १, सम्पादक : लालचन्द भगवानदास गाँधी । प्रति नं. १६१(२), पृ. ३३, लम्बाई १२.५ इंच, चौडाई २ इंच । पत्र संख्या ५६ । प्रत्येक पत्रमें ३-४ पंक्तियाँ और प्रत्येक पंक्ति में २५ अक्षर । लेखन समय - अज्ञात । गाथाएँ ५४४ ।
इसके पाठ परवर्ती हैं । क्वचित् प्राचीनता दृष्टिगोचर होती है । उदाहरण : परवर्ती-धरिज (३५), प्राचीन-वेसो (४५) ७. पू १ : डिस्क्रिप्टिव केटलोग ऑफ द गवर्नमेण्ट कलेक्शन ऑफ मेन्युस्क्रीप्ट्स ।
प्रकाशक : भण्डारकर ओरिएण्टल रिसर्च इन्स्टीट्यूट, पूना १९५२, भाग १८, पृ. ३७१ । प्रति नं. २३३, लम्बाई १२.५ इंच, चौडाई २ इंच । पत्र संख्या ५७। प्रत्येक पत्र में ४-५ पंक्तियाँ, प्रत्येक पंक्ति में लगभग ३७ अक्षर । लेखन समय - अज्ञात । पुरानी, गाथा संख्या ५४४ । इस प्रत के पाठ अपना प्राचीन रूप लिये हुए हैं, इसलिए विश्वसनीय है । इसकी स्थिति अच्छी है । अक्षर
सुवाच्य हैं और किसी पत्र में कोई क्षति नहीं है । कागज की प्रति ८. पू २ : डिस्क्रीप्टिव केटलोग ऑफ मेन्युस्क्रीप्ट्स इन द गवर्नमेण्ट मेन्युस्क्रीप्ट्स
लाइब्रेरी, संकलनकर्ता - एच. आर. कापड़िया । प्रकाशक : भण्डारकर
ओरिएण्टल रिसर्च इन्स्टीट्यूट, पूना १९४०, पृ. १५३, प्रति नं. ७३५, लम्बाई १२ इंच, चौडाई ४.७५ इंच । पत्र संख्या १२(२४-३५) । प्रत्येक पत्र में १४१५ पंक्ति, प्रत्येक पंक्ति में ५२-५८ अक्षर । लेखन समय अज्ञात । पुरानी, गाथाएँ ५४४ । पाठ कुछ-कुछ ठीक हैं । पाठों में अर्वाचीनता परिलक्षित होती है । अक्षर सुवाच्य हैं और प्रतियों में कोई क्षति नहीं है ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org