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प्रथमा एकवचन के लिए जहाँ-जहाँ - ओ प्रत्यय मिलता है उसके बदले में कुछ
प्रतों में कहीं-कहीं पर - उ प्रत्यय मिलता है । यथा अविणीओ (२७) इत्यादि। २. खं १ : केटलोग ऑफ पाम-लीफ मेन्युस्क्रीप्ट्स इन द शान्तिनाथ जैनभण्डार,
कैम्बे, पार्ट १, जनरल एडिटर बी. जे. सांडेसरा, प्रकाशक : ओरिएण्टल इन्स्टीट्यूट बरोडा; ग्रन्थांक १४९, सन् १९६१, प्रति नं. १२०(१) । लम्बाई : १४ इंच, चौड़ाई : १.७ इंच । प्रत्येक पत्र में ४-५ पंक्तियाँ, प्रत्येक पंक्ति में लगभग २६ अक्षर हैं । लेखन समय १२वीं वि० शती उत्तरार्ध पत्र संख्या ४५, गाथा संख्या ५४२ । प्रारम्भिक दो पत्र नहीं हैं । कहीं-कहीं पत्रों के टूटने से पाठ क्षत हो गये हैं । यह हस्तप्रत “जै” के बाद सबसे पुरानी है । मौलिकता की दृष्टि से इसके पाठ विश्वसनीय भी हैं । इसमें पुंलिंग प्रथमा एक वचन के
"-ओ" प्रत्यय के लिए - ओ ही मिलता है । ३. खं २ : केटलोग ऑफ पाम-लीफ मेन्युस्क्रीप्ट्स इन द शान्तिनाथ जैन भण्डार,
कैम्बे, पार्ट १, जनरल एडिटर बी. जे. सांडेसरा, प्रकाशक : ओरिएण्टल इन्स्टीट्यूट बरोडा; ग्रन्थांक १४९, सन् १९६१, प्रति नं. ८८(१) । लम्बाई : १६ इंच, चौड़ाई : २.२ इंच । प्रत्येक पत्र में ४-५ पंक्तियाँ, प्रत्येक पंक्ति में लगभग २७ अक्षर हैं । पत्र संख्या ५०, लेखन समय वि. सं. १२९०, गाथा संख्या ५४२ । इसकी स्थिति अच्छी है । इसके पाठ शुद्धता की दृष्टि से ठीक हैं यद्यपि कहीं-कहीं परवर्ती पाठ उपलब्ध हैं । यथा निरोणामो (२७) कोइ (३१)
इत्यादि । १. खं ३ : केटलोग ऑफ पाम-लीफ मेन्यूस्क्रीप्ट्स इन द शान्तिनाथ जैन भण्डार,
कैम्बे, पार्ट १, जनरल एडिटर बी. जे. सांडेसरा, प्रकाशक : ओरिएण्टल इन्स्टीट्यूट बरोडा; ग्रन्थांक १४९, सन् १९६१, प्रति नं. १०१(१) । लम्बाई : १३.२ इंच, चौड़ाई : २.२ इंच । प्रत्येक पत्र में ४-५ पंक्तियाँ, प्रत्येक पंक्ति में २८ अक्षर हैं । पत्र संख्या ६४, लेखन समय वि० सं० १३०८, गाथा सख्या ५४१ । ___ प्रथम पत्र में श्री कृषभदेव का सुनहरे पीले रंग का छोटा-सा एक चित्र है, जिसकी आकृति १.७" ग २.२" है । यह प्रति प्राचीन और परवर्ती दोनों तरह
के पाठों को लिए हुए है । उदाहरण : कुविओ (३६), धरेज (३५) इत्यादि । ५. पा १ : “ए डिस्क्रीप्टिव केटलोग ऑफ पाटण मेन्युस्क्रीप्ट्स इन द जैन भण्डार्स
ऐट पत्तण" नं. १, संघवी पाडा, प्रकाशक : गायकवाड़ ओरिएण्टल इन्स्टिट्यूट,
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