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उपदेशमाला के समीक्षात्मक सम्पादन की आवश्यकता
___ उपदेशमाला जैन औपदेशिक साहित्य का प्रथम और एक श्रेष्ठ ग्रन्थ है । इसमें चतुर्विध संघ-श्रमण श्रमणी और श्रावक श्राविकाओं के आचार से सम्बन्धित उपदेश संगृहीत हैं । यह ग्रन्थ जैन समाज में बहुत सम्मानित रहा । इसी का आधार लेकर बाद में लगभग २४ औपदेशिक ग्रन्थ लिखे गये । इसकी उपयोगिता का ही परिणाम है कि इस पर लगभग ३२ बृहद् और लघु टीकाएँ लिखी गई । इस पर सबसे पहली टीका जयकीर्ति ने प्राकृत भाषा में संवत् ९१३ में लिखी उसके बाद सिद्धर्षिगणि ने संवत् ९६२ में संस्कृत भाषा में हेयोपादेया नाम की बृहद् और लघु टीका लिखी। टीकाओं में यह प्रमुख मानी जाती है ।
इस ग्रन्थ के निम्नलिखित आठ विभिन्न संस्करण निकल चुके हैं१. उपदेशमाला सटीका (हेयोपादेया (सिद्धर्षि)
टीकाकार : श्रीमत् सिद्धर्षिगणि, प्रकाशक : हीरालाल हंसराज, १९३७. २. उपदेशमाला (बालावबोध अन्वय सहित) (बालाव.) मुद्रक : रणछोड़लाल गंगाराम,
अहमदाबाद युनाइटेड प्रीन्टिंग एण्ड जनरल एजेंसी कं. लि. माना की हवेली के
मध्य सं० १९३४. ३. उपदेशमाला भाषान्तर (मूल गाथाएँ, उन गाथाओं का और श्री रामविजयगणि की
सम्पूर्ण टीका का गुजराती अनुवाद) (भावन०) प्रकाशक : श्री जैन धर्म प्रसारक
सभा, भावनगर सं० १९६६. ४. श्री उपदेशमाला टीका - श्री रामविजयगणि (रामवि०) पंडित श्रावक हीरालाल ___हंसराज (जामनगर वाला). सं. १९६६. ५. उपदेशमाला प्रकरण - (शाह कुं०) प्रकाशक : शाह कुँवर जी आनन्द जी जैन
धर्म प्रसारक सभा, भावनगर । ६. उपदेशमाला सटीका – रत्नप्रभसूरि (रत्नप्र.) धनजीभाई देवचन्द जवेरी, ५०-५४
मीरझा स्ट्रीट, मुंबई-३. सं. २०१४. ७. उपदेशमाला (रामविजय की टीका का हिन्दी अनुवाद) (पद्मवि०) अनुवाद : मुनि
पद्मविजय, प्रकाशक : श्री निर्ग्रन्थ साहित्य प्रकाशन संघ, दिल्ली सन् १९७१.
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