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देखकर राजा को सूचित किया । राजा शतानीक ने युद्ध किया और विजयी हुआ। ऐच्छिक मांगने के लिए कहे जाने पर सेडुक अपनी पत्नी से पूछने आया । पत्नी ने सम्पन्न होने पर अपने छोड़े जाने के भय से उसे रोज भर पेट भोजन और एक सुवर्ण मुद्रा मांगने को कहा । सेडुक ने वैसा ही किया । वह धन जन से सम्पन्न हो गया । अतृप्तिपूर्वक भोजन करने से वह कोढ़ी हो गया । उसे सब ताड़ना देते थे जिससे क्षुब्ध होकर उसने बदला लेने के लिए अपने बेटे से एक बकरे का बच्चा पूजार्थ मंगवाया । वह उस बकरे को अपनी कोढ़ का पीब इत्यादि भोजन में दिया करता था जिससे बकरा भी कोढ़ी हो गया । उसका मांस परिवार वालों को खिलाकर वह तीर्थयात्रा पर चल दिया। रास्ते में प्यास लगने के कारण वह एक सरोवर के पास रुका । जलपान करने से उसका रोग ठीक होने लगा । वह वहाँ बहुत समय तक रहकर पूर्ण स्वस्थ बन गया । लेकिन उसका पूरा परिवार कोढ़ी हो गया । वह घर आकर सबको उपालम्भ देने लगा। नगरवालों ने उसकी बेइजती करके नगर से बाहर निकाल दिया। वह भटकते हुए राजगृही नगरी के सदर दरवाजे के पास पहुँचा । इधर भगवान् महावीर के पदार्पण करने पर द्वारपाल सेडुक को दरवाजे के पास रखवाली करने के लिए रखकर वन्दना करने चल दिया । सेडुक भूख लगने पर देवी के मन्दिर में चढ़े नैवेद्यादि खा लिया करता था लेकिन प्यास से त्रस्त होकर वह मर गया और दरवाजे के समीप बावड़ी में मेढ़क बना३१ ।
नगरनारियों से भगवान महावीर का आगमन सुनकर जातिस्मरण ज्ञान से पूर्वजन्म ज्ञात हुआ । वह दर्शनार्थ जा रहा था कि घोड़े से कुचल कर मर गया । मरकर दराकदेव बना । वह देव राजा श्रेणिक के सम्यक्त्व के परीक्षार्थ भगवान महावीर के पास कोढी वेश में आया । वह अपने शरीर पर दुर्गन्धित मवाद, जो वास्तव में चन्दन था, का लेप करता था । यह देखकर श्रेणिक को क्रोध आया संयोगवश भगवान् को छींक आयी । उसने कहा आप जल्दी मरें । श्रेणिक के छींकने पर उसने कहा - आप चिरकाल तक जीएं । अभयकुमार के छींकने पर कहा चाहे मरें चाहे जीएं । कालसौरिक कसाई के छींकने पर कहा - न जीओ न मरो । इस पर राजा श्रेणिक क्रोधित होकर उसे पकड़वाना चाहा, लेकिन देव आकाश में उड़ गया। उसने भगवान् से उसके बारे में जानकारी प्राप्त की । फिर उसके कथनों का रहस्य पूछा । भगवान् ने कहा – मुझे जल्दी मरने के लिए इसलिए कहा कि मरने के बाद मुक्तिसुख मिलेगा । आपको जीने के लिए इसलिए कहा कि आप मरकर नरक में जाने वाले
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