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६५. अतिस्नानी त्रिदण्डी कथा
स्तम्बपुर में चण्डिल नामक एक चतुर नाई अपनी विद्या के बल से हजामत करके अपने अस्त्रों को आकाश में अधर रख दिया करता था । किसी समय एक त्रिदण्डी नाई की विद्या का चमत्कार देखकर उससे वह विद्या सीखने के लिए उसकी सेवाशुश्रूषा करने लगा । वह नाई से विद्या सीखकर घूमते-घूमते हस्तिनापुर आया और लोगों को अपनी विद्या का चमत्कार दिखाया । राजा भी देखने आये । राजा के पूछने पर उसने सरस्वती को ही अपना विद्यागुरू बताया जिससे आकाश में लटकता हुआ त्रिदण्ड जमीन पर गिर गया । सभी लोग उसका मजाक उड़ाने लगे । वह लज्जित होकर वहाँ से चला गया ।
६६. कपटशप तपस्वी की कथा
उज्जयिनी नगरी में अघोरशिव नामक एक धूर्त ब्राह्मण रहता था । उसकी धूर्तता एवं महापाप के कारण राजा ने उसे देश निकाला दे दिया । उसने चमार देश में जाकर चोरों से कहा यदि तुम लोग मेरी प्रशंसा लोगों के सामने करो तो तुम्हें बहुत धन दूँ । वे स्वीकार करके उसका तीन गाँव के लोगों में झूठ-मूठ का प्रचार करने लगे कि यह तपस्वी है उपवास करता है । भोले लोग उस पर विश्वस्त होकर उसे अपना सब कुछ बताने लगे । वह चोरों को उनके धन का पता बताता था और वे चोर उन्हें लूट लेते थे । एक बार चोर पकड़ा गया । राजा के सामने लाये जाने तथा मृत्युदण्ड की धमकी देने पर उसने कपटी तपस्वी तथा सभी चोरों का भेद बता दिया । राजा ने उस सभी चोरों को मरवा दिया और तपस्वी की दो आँखे निकलवा ली । वह पीड़ा के कारण छटपटाने लगा और अपने आपको धिक्कारने लगा । धर्मकार्य में कपट दुःखदायी होता है ।
६७. दर्दुराँकदेव
उन दिनों कौशाम्बी महानगरी में शतानिक के राज्य में सेडुक नामक दरिद्र ब्राह्मण रहता था । एक दिन उसकी गर्भवती पत्नी ने प्रसवकाल नजदीक आया जानकर उसने घी - गुड़ लाने को कहा । अर्थाभाव के कारण उसने राजा को एक फल भेंट में रोज दिया करता था । यों सेवा करते काफी दिन हो गये कि दिन दधिवाहन राजा ने कौशाम्बी पर चढ़ायी कर दी । अल्प सेना होने के कारण शतानीक अन्दर ही रहा । वर्षाकाल में फल-फूल तोड़ने निकला हुआ सेडुक दधिवाहन की अल्पसेना
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