________________
एक आँख निकाल शिवजी के ललाट पर लगा दिया । तत्पश्चात् पूजा किया । इस पर शिवजी प्रसन्न होकर उसे आशीर्वाद दिये और मुग्ध को उसकी “भक्ति" का अन्तर बता दिया ।
६४. विद्यादाता चाण्डाल
मगध देश की राजधानी राजगृही में राजा श्रेणिक राज्य करता था । उसकी चिलणा को दोहद पैदा हुआ कि वह चारों ओर कोट उद्यान वाले एक खम्भे पर टिके महल में निवास करे । राजा अभयकुमार की सहायता से वैसा बनवा दिया और उसका दोहद पूर्ण किया । उसी समय एक विद्यासिद्ध चाण्डाल की गर्भवती पत्नी को आम खाने का दोहद हुआ । चाण्डाल इस मौसम में कोई उपाय न देख अपनी विद्या की सहायता से रात को उसी महल से एक आम चुराकर अपनी पत्नी का दोहद पूर्ण किया। सुबह जब आम के गायब होने की बात अभयकुमार को मालूम पड़ी तो चोर का पता लगाने के लिए नगर के एक चौराहे पर लोगों को एकत्रित करके एक कहानी सुनाने लगा पुण्यपुर नगर के गोवर्धन सेठ की सुन्दरी नामक एक रूपवती पुत्री थी । वह प्रतिदिन योग्य वर के लिए फूल चुराकर कामदेव यक्ष की पूजा किया करती थी । एक दिन माली ने उसे पकड़ लिया और एक बार अपनी कामवासना तृप्त करने की शर्त पर छोड़ने को कहा । सुन्दरी शादी के बाद शर्त पूरा करने का वचन देकर घर चली गयी । पाँचवें दिन उसकी शादी हुई उसने सुहागरात में अपने पति को सब सुना दिया । पति ने उसे सत्यवादी समझकर जाने की अनुमति दे दी । वह आधी रात को सुसज्जित होकर चली, रास्ते में चोर और राक्षसों को फिर मिलने का वायदा करके उसके पास गयी । माली ने उसकी सत्यवादिता पर उसे छोड़ दिया । फिर वापस लौटते हुए वह राक्षस से भी अपनी सत्यवादिता के कारण मुक्त हो गयी । इस प्रकार पति भी उस पर प्रसन्न हो गया । यह कहानी कहकर अभयकुमार ने पूछा - इसमें सबसे साहसपूर्ण कार्य किसने किया । किसी ने पति को कहा, किसी ने माली को लेकिन चाण्डाल ने चोरों को साहसी बताया । इस पर अभयकुमार ने उसे पकड़कर आम चुराने की बात पूछी उसने स्वीकार कर लिया । अभयकुमार उसे राजा के पास ले गया । राजा ने उसे मृत्युदण्ड दे दिया । लेकिन अभयकुमार के कहने पर राजा ने उससे उसकी विद्या सीखी और बाद में उसे विद्यागुरु मानकर उचित सम्मान के साथ उसे धन देकर विदा किया ।
Jain Education International
-
१०१
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org