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शौरसेनी जैनागम
अध्ययन-अध्यापन की प्रणाली का बहुत कुछ ज्ञान प्राप्त होता है ।
नेमिचन्द्र (११ वीं शती) को रचनाएं
जैसा ऊपर संकेत किया जा चुका है, इसी षट्खंडागम और उसकी धवला टीका के आधार से गोम्मटसार की रचना हुई जिसके ७३३ गाथाओं युक्त जीवकांड तथा ६६२ गाथाओं युक्त कर्मकांड नामक खंडों में उक्त आगम का समस्त कर्मसिद्धान्त सम्बन्धी सार निचोड़ लिया गया है, और अनुमानत: इसी के प्रचार से मूल षट्खंडागम के अध्ययन-अध्यापन को प्रणाली समाप्त हो गई। गोम्मटसार के कर्ता नेमिचन्द्र ने अपनी कृति के अन्त में गर्व से कहा है कि जिस प्रकार चक्रवर्ती षट्खंड पृथ्वी को अपने चक्र द्वारा सिद्ध करता है, उसी प्रकार मैंने अपनी बुद्धि रूपी चक्र से षट्खंडागम को सिद्धकर अपनी इस कृति में भर दिया है । इसी सफल सैद्धांतिक रचना के कारण उन्हें सिद्धांत चक्रवर्ती की उपाधि प्राप्त हुई और तत्पश्चात् यह उपाधि अन्य अनेक आचार्यो के साथ भी संलग्न पाई जाती है । संभवतः त्रैविद्यदेव की उपाधि वे आचार्य धारण करते थे, जो इस षट्खंडागम के प्रथम तीन खंडों के पारगामी हो जाते थे। इन उपाधियों ने धवलाकार के पूर्व की सूत्राचार्य आदि उपाधियों का लोप कर दिया। उन्होंने अपनी यह कृति गोम्मटराय के लिये निर्माण की थी । गोम्मट गंगनरेश राचमल्ल के मंत्री चामुंडराय का ही उपनाम था, जिसका अर्थ होता है - सुन्दर, स्वरूपवान् । इन्हीं चामुडराय ने मैसूर के श्रवण बेलगोल के विन्ध्यगिरि पर बाहुबलि की उस प्रख्यात मूर्ति का उद्घाटन कराया था, जो अपनी विशालता और कलात्मक सौन्दर्य के लिये कोई उपमा नहीं रखती। समस्त उपलभ्य प्रमाणों पर से इस मूर्ति को प्रतिष्ठा का समय रविवार दिनांक २३ मार्च सन् १०२८ चैत्र शुक्ल पंचमी, शक सं० १५१ सिद्ध हुआ है । कर्मकांड की रचना तथा इस प्रतिष्ठा का उल्लेख कर्मकाण्ड की ९६८ वी गाथा में साथ-साथ आया है । अतएव लगभग यही काल गोम्मटसार की रचना का माना जा सकता है। इन रचनाओं के द्वारा षट्खंडागम के विषय का अध्ययन उसी प्रकार सुलभ बनाया गया जिस प्रकार उपर्युक्त नियुक्तियों और भाष्यों द्वारा श्रुतांगों का । गोम्मटसार पर संस्कृत में दो विशाल टीकाएं लिखी गईएक जीवप्रबोधिनी नामक टीका केशव वर्णो द्वारा, और दूसरी मंदप्रबोधिनी नामकी टीका श्रीमदभयचन्द्र सिद्धांत चक्रवर्ती के द्वारा । कुछ संकेतों के आधार से प्रतीत होता है कि गोम्मटसार पर चामुडराय ने भी कन्नड में एक वृत्ति लिखी थी, जो अब नहीं मिलती। इनके आधार से हिंदी में इसकी सम्यग्ज्ञान
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