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शौरसेनी जैनागम
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तीन प्रतियां प्राचीन कन्नड़ लिपि में ताड़पत्र पर लिखी हुई केवल एक स्थान में, अर्थात् मैसूर राज्य में मूडबद्री नामक स्थान के सिद्धांत वस्ति नामक मंदिर में ही सुरक्षित बची थीं, और वहां भी उनका उपयोग स्वाध्याय के लिये नहीं, किन्तु दर्शन मात्र से पुण्योपार्जन के लिए किया जाता था। उन प्रतियों की उत्तरोत्तर जीर्णता को बढ़ती देखकर समाज के कुछ कर्णधारों को चिता हुई,
और सन् १८६५ के लगभग उनकी कागज पर प्रतिलिपि करा डालने का निश्चय किया गया । प्रतिलेखन कार्य सन् १९२२ तक धीरे धीरे चलता हुआ २६-२७ वर्ष में पूर्ण हुआ। किन्तु इसी बीच इनकी एक प्रतिलिपि गुप्तरूप से बाहर निकलकर सहारपुर पहुंच गई। यह प्रतिलिपि भी कन्नड लिपि में थी। अतएव इसकी नागरी लिपि कराने का प्रायोजन किया गया, जो १९२४ तक पूरा हुआ। इस कार्य के संचालन के समय उनकी. एक प्रति पुन: गुप्त रूप से बाहर आ गई, और उसी की प्रतिलिपियां अमरावती कारंजा, सागर और आरा में प्रतिष्ठित हुई । इन्हीं गुप्तरूप के प्रगट प्रतियों पर से इनका सम्पादन कार्य प्रस्तुत लेखक के द्वारा सन् १९३८ में प्रारम्भ हुआ, और सन् १९५८ में पूर्ण हुआ । हर्ष की बात यह है कि इसके प्रथम दो भाग प्रकाशित होने के पश्चात् ही मूडबिद्री की सिद्धान्त बस्ति के अधिकारियों ने मूल प्रतियों के मिलान की भी सुविधा प्रदान कर दी, जिससे इस महान ग्रन्थ का सम्पादन-प्रकाशन प्रामाणिक रूप से हो सका।
षट्खंडागम टीका
षट्खंडागम के उपयुक्त छह खंडों में सूत्ररूप से जीव द्वारा कर्मबंध और उससे उत्पन्न होनेवाले नाना जीव-परिणामों का बड़ी व्यवस्था, सूक्ष्मता और विस्तार से विवेचन किया गया है। यह विवेचन प्रथम तीन खंडों में जीव के कर्तृत्व की अपेक्षा में और अन्तिम तीन खंडों में कर्मप्रकृतियों के स्वरूप की अपेक्षा से हुमा है । इसी विभागानुसार नेमिचन्द्र आचार्य ने इन्हीं के संक्षेप रूप गोम्मटसार ग्रंथ के दो भाग किये हैं-एक जीवकांड और दूसरा कर्मकांड । इन ग्रन्थों पर श्रुतावतार कथा के अनुसार क्रमशः अनेक टीकाएं लिखी गई जिनके कर्ताओं के नाम कुंदकुंद, श्यामकुंड, तुम्बुलूर, समन्तभद्र और बप्पदेव उल्लिखित मिलते हैं, किन्तु ये टीकाएं अप्राप्य हैं । जो टीका इस ग्रन्थ की उक्त प्रतियों पर से मिली है, वह वीरसेनाचार्यकृत धवला नाम की है, जिसके कारण ही इस ग्रन्थ की ख्याति धवल सिद्धान्त के नाम से पाई जाती है । टीकाकार ने अपनी जो प्रशस्ति ग्रन्थ के अन्त में लिखी है, उसपर से उसके पूर्ण होने का समय
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