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कुमार चाटुर्ज्या ), 'कला के प्राण बुद्ध' (श्री जगदीश चन्द्र ) 'नाट्य कला मीमांसा' (डा० सेठ गोविन्ददास), 'भारतीय दर्शनों का समन्वय' (डा० आदित्यनाथ झा), 'मध्यकालीन हिन्दी साहित्य और तुलसीदास' (डा० भागीरथ मिश्र ), 'अनुष्टुप' (पं० सूर्यनारायण व्यास की प्रतिनिधि रचनाएं), 'श्री रामानुजलाल श्रीवास्तव की प्रतिनिधि रचनाओं का संकलन ' ( संपादन ; श्री हरिशंकर परसाई ) 'रीवां राज्य का इतिहास' (श्री राम प्यारे अग्निहोत्री), 'निरंजनी सम्प्रदाय के हिन्दी कवि' (डा० सावित्री शुक्ल), 'म. प्र. के संगीतज्ञ' (श्री प्यारेलाल श्रीमाल ), आदि ग्रन्थ उल्लेखनीय हैं ।
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"भारतीय संस्कृति में जैन धर्म का योगदान" परिषद् के प्रकाशन कार्यक्रम की 8 वीं भेंट थी । इसमें संस्कृत पाली व प्राकृत साहित्य के अधिकारी विद्वान् स्व० डा० हीरालाल जैन के शोधपूर्ण चार भाषण संकलित हैं, जिनमें जैन धर्म से संम्बन्धित संस्कृति, इतिहास, दर्शन तथा वास्तुकला, मूर्तिकला और चित्रकला पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है । स्व० डा० हीरालाल जैन के इन व्याख्यानों का आयोजन परिषद् द्वारा मार्च १९६० में भोपाल में आयोजित किया गया था। डा० जैन ने ही पुस्तक के रूप में प्रकाशित करने के उद्देश्य से अपने मूल भाषण में आवश्यक परिवर्तन-परिवर्द्धन किये थे और ग्रन्थ को क्रमबद्ध कर इसे उपयोगी तथा रोचक बनाया था ताकि पुस्तक सामान्य पाठकों के अतिरिक्त विषय के शोधकर्ता विद्वानों को नयी सामग्री उपलब्ध करा सके ।
अब इस ग्रन्थ का पुनर्मुद्रण प्रस्तुत है । पुस्तक का पहला संस्करण बहुत पहले ही समाप्त हो चुका था लेकिन इसकी मांग निरंतर बनी हुई थी । कई कारणों से इसके पुनंप्रकाशन में विलम्ब हो रहा था। विगत दिनों राज्य स्तरीय भगवान महावीर की २५०० वीं परिनिर्वाण महोत्सव समिति ने इसके पुनर्मुद्रण के लिये परिषद् को अनुदान स्वीकृत किया है । फलस्वरूप परिषद् इसका पुर्नप्रकाशन इसी पुण्य वर्ष में कर रही है ।
आशा है पहले की तरह पाठकों और विद्वानों द्वारा इस पुस्तक का समुचित आदर किया जावेगा ।
दिनांक २८-२-७५
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सचिव,
म० प्र० शासन साहित्य परिषद्, भोपाल
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