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आमुख
मध्यप्रदेश शासन साहित्य परिषद् के आमन्त्रण को स्वीकार कर मैंने भोपाल में दिनांक ७, ८, 8 और १० मार्च १९६० को क्रमशः चार व्याख्यान 'भारतीय संस्कृति में जैन धर्म का योगदान' विषय पर दिये। चारों व्याख्यानों के उपविषय थे जैन इतिहास, जैन साहित्य, जैन दर्शन, और जैन कला इन व्याख्यानों की अध्यक्षता क्रमशः मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डा० कैलाशनाथ काटजू, म० प्र०विधान सभा के अध्यक्ष पं. कुंजीलाल दुबे, म०प्र० के वित्त मन्त्री श्री मिश्रीलाल गंगवाल और म०प्र० के शिक्षा मन्त्री डा. शंकरदयाल शर्मा द्वारा की गई थी। ये चार व्याख्यान प्रस्तुत ग्रन्थ में प्रकाशित हो रहे हैं।
पाठक देखेंगे कि उक्त चारों विषयों के व्याख्यान अपने उस रूप में नहीं है, जिनमें वे औसतन एक-एक घंटे में मंच पर पढ़े या बोले जा सके हों। विषय की रोचकता और उसके महत्व को देखते हुए उक्त परिषद् के अधिकारियों, और विशेषतः मध्यप्रदेश के शिक्षामंत्री डा० शंकरदयाल शर्मा, जिन्होंने अन्तिम व्याख्यान की अध्यक्षता की थी, का अनुरोध हुआ कि विषय को और अधिक पल्लवित करके ऐसे एक ग्रन्थ के प्रकाशन योग्य बना दिया जाय, जो विद्यार्थियों व जनसाधारण एवं विद्वानों को यथोचित मात्रा में पर्याप्त जानकारी दे सके । तदनुसार यह ग्रन्थ उन व्याख्यानों का विस्तृत रूप है। जैन इतिहास और दर्शन पर अनेक ग्रन्थ व लेख निकल चुके हैं। किन्तु जैन साहित्य और कला पर अभी भी बहुत कुछ कहे जाने का अवकाश है। इसलिये इन दो विषयों का अपेक्षाकृत विशेष विस्तार किया गया है । ग्रन्थ-सूची और शब्द-सूची विशेष अध्येताओं के लिये लाभदायक होगी। आशा है, यह प्रयास उपयोगी सिद्ध होगा।
अन्त में मैं मध्यप्रदेश शासन साहित्य परिषद् का बहुत कृतज्ञ हूँ, जिसकी प्रेरणा से मैं यह साहित्य-सेवा करने के लिये उद्यत हुआ।
हीरालाल जैन
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