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________________ गुजरात काठियावाड़ में जैन धर्म ४३ है । श्रीचन्द्र कवि ने अपनी कथाकोष नामक अपभ्रंश रचना की प्रशस्ति में कहा है कि मूलराज का धर्मस्थानीय गोष्ठिक प्राग्वाटवंशी सज्जन नामक विद्वान था, और उसी के पुत्र कृष्ण के कुटुंब के धर्मोपदेश निमित्त कुंदकुंदान्वयी मनि सहस्त्रकीति के शिष्य श्रीचन्द्र ने उक्त ग्रंथ लिखा । मनि सहस्त्रकीर्ति के संबंध में यह कहा गया है कि उनके चरणों की वंदना गांगेय, भोजदेव आदि नरेश करते थे। अनुमानतः गांगेय से चेदि के कलचुरि नरेश का, तथा भोजदेव से उस नाम के परमारवंशी मालवा के राजा से अभिप्राय है । उद्योतनसूरिकृत कुवलयमाला (ई०सं ७७८) के अनुसार गुप्तवंशी आचार्य हरिगुप्त यवन राज तोरमाण (हणवंशीय) ६. गुरु थे और चन्द्रभागा नदी के समीप स्थित राजधानी पवैया (पंजाब) में ही रहते थे। हरिगुप्त के शिष्य देवगुप्त की भी बड़ी पद प्रतिष्ठा थी। देवगुप्त के शिष्य शिवचन्द्र पवैया से विहार करते हुए भिन्नमाल ( श्रीमाल, गुजरात की प्राचीन राजधानी) में आये। उनके शिष्य यज्ञदत्त व अनेक अन्य गुणवान शिष्यों ने गुर्जर देश में जैनधर्म का खूब प्रचार किया, और उसे बहुत से जैन मन्दिरों के निर्माण द्वारा अलंकृत कराया। उनके एक शिष्य वटेश्वर ने आकाश वा नगर में विशाल मन्दिर बनवाया। बटेश्वर के शिष्य तत्वाचार्य कुवलयमालाकार क्षत्रिय वंशी उद्योतनसूरि के गुरु थे । उद्योतन सूरि ने वीरभद्र आचार्य से सिद्धान्त की तथा हरिभद्र आचार्य से न्याय की शिक्षा पाकर शक संवत् ७०० में जावालिपुर (जालोर-राजपुताना) में वीरभद्र द्वारा बनवाये हुए ऋषभदेव के मन्दिर में अपनी कुवलयमाला पूर्ण की। तोरमाण उस हूण आक्रमणकारी मिहिरकुल का उत्तराधिकारी था जिसकी क्रूरता इतिहास प्रसिद्ध है। उस पर इतने शीघ्र जैन मुनियों का उक्त प्रभाव पड़ जाना जैनधर्म की तत्कालीन सजीवता और उदात्त धर्म-प्रचार-सरणि का एक अच्छा प्रमाण है। ___चालुक्य नरेश भीम प्रथम में जैनधर्म का विशेष प्रसार हुआ। उसके मन्त्री प्राग्वाट वंशी विमलशाह ने आबू पर आदिनाथ का वह जैनमंदिर बनवाया जिसमें भारतीय स्थापत्यकला का अति उत्कृष्ट प्रदर्शन हुआ है, और जिसकी सूक्ष्म चित्रकारी, बनावट की चतुराई तथा सुन्दरता जगद्विख्यात मानी गई है। यह मंदिर ई० सन् १०३१ अर्थात् महमूद गजनी द्वारा सोमनाथ को ध्वस्त करने के सात वर्ष के भीतर बनकर तैयार हुआ था। खतरगच्छ पट्टावली में उल्लेख मिलता है कि विमलमंत्री ने तेरह सुलतानों के छत्रों का अपहरण किया था; चन्द्रावती नगरी की नींव डाली थी, तथा अबुदाचल पर ऋषभदेव का मंदिर निर्माण कराया था। स्पष्टतः विमलशाह ने ये कार्य अपने राजा भीम की अनुमति से ही किये होंगे और उनके द्वारा उसने सोमनाथ तथा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001705
Book TitleBharatiya Sanskruti me Jain Dharma ka Yogdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherMadhyapradesh Shasan Sahitya Parishad Bhopal
Publication Year1975
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Culture, Religion, literature, Art, & Philosophy
File Size10 MB
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