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________________ जैन चित्रकला ३६७ (ई० १०६४ से २२४३) के राज्यकाल में लिखी गई थी। इसमें अलंकरणात्मक चक्राकार आकृतियां बहुत हैं, और वे प्रायः उसी शैली की हैं जैसी ऊपर वर्णित षट्खंडागम की। हां, एक चक्र के भीतर हस्तिवाहक का, तथा अन्यत्र पुष्पमालाएं लिए हुए दो अप्सराओं के चित्र विशेष हैं। इनमें भी षट्खंडागम के चित्रों के समान पहली आंख की प्राकृति मुख-रेखा के बाहर नहीं निकली। ११२७ ई० में लिखित खम्भात के शान्तिनाथ जैनमन्दिर में स्थित नगीनदास भन्डार की ज्ञाताधर्मसूत्र की ताड़पत्रीय प्रति के पद्मासन महावीर तीर्थंकर आसपास चौरी वाहकों सहित, तथा सरस्वती देवी का त्रिभंग चित्र उल्लेखनीय हैं। देवी चतुर्भुज है। ऊपर के दोनों हाथों में कमलपुष्प तथा निचले हाथों में अक्षमाला व पुस्तक है । समीप में हंस भी है। देवी के मुख की प्रसन्नता व अंगों का हाव-भाव और विलास सुन्दरता से अंकित किया गया है। बड़ौदा जनपद के अन्तर्गत छाणी के जैन-ग्रन्थ-भण्डार की ओधनियुक्ति की ताडपत्रीय प्रति (ई० ११६१) के चित्र विशेष महत्व के हैं, क्योंकि इनमें १६ विद्यादेवियों तथा अन्य देवियों और यक्षों के सुन्दर चित्र उपलब्ध हैं । विद्यादेवियों के नाम हैं:- रोहिणी, प्रज्ञप्ति, वज्रशृखला, वज्रांकुषी, चक्रेश्वरी, पुरुषदत्ता, काली, महाकाली, गौरी, गांधारी, महाज्वाला, मानवी, वैरोट्या, अच्छप्ता, मानसी, और महामानसी । अन्य देव-देवी हैं :-कापर्दीयक्ष, सरस्वती, अम्बिका, महालक्ष्मी, ब्रह्मशान्ति । सभी देवियां चतुर्भुज व भद्रासन हैं । हाथों में वरद व अभय मुद्रा के अतिरिक्त शक्ति, अंकुश, धनुष, वरण, शृखला, शंख, असि, ढाल, पुष्प, फल व पुस्तक प्रादि चिन्ह हैं। मस्तक के नीचे प्रभावल, सिर पर मुकुट, कान में कर्णफूल व गले में हार भी विद्यमान हैं। अम्बिका के दो ही हाथ हैं । दाहिने हाथ में बालक, और बाएं हाथ में पाम्रफलों के गुच्छे सहित डाली। इन सब आकृतियों में परली आँख निकली हुई, है तथा नाक व ठुड्डी की कोणाकृति स्पष्ट दिखाई देती है। शोभांकन समस्त रूढ़ि-आत्मक हैं। इस जैननथ में इन चित्रों का अस्तित्व यह बतलाता है कि इस काल की कुछ जैन उपासना विधियों में अनेक वैष्णव व शैवी देवी-देवताओं को भी स्वीकार कर लिया गया था। सन् १२८८ में लिखित सुबाहु-कथादि कथा-संग्रह की ताड़पत्र प्रति में २३ चित्र हैं, जिनमें से अनेक अपनी विशेषता रखते हैं । एक में भगवान् नेमिनाथ की वरयात्रा का सुन्दर चित्रण है । कन्या राजीमती विवाह-मण्डप में बैठी हुई है, जिसके द्वार पर खड़ा हुआ मनुष्य हस्ति-आरूढ़ नेमिनाथ का हाथ जोड़कर स्वागत कर रहा है । नीचे की ओर मृगाकृतियां बनी हैं । दो चित्र बलदेव मुनि के हैं । एक में मृगादि पशु बलदेव मुनि का उपदेश श्रवण कर रहे हैं, और दूसरे में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001705
Book TitleBharatiya Sanskruti me Jain Dharma ka Yogdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherMadhyapradesh Shasan Sahitya Parishad Bhopal
Publication Year1975
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Culture, Religion, literature, Art, & Philosophy
File Size10 MB
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