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महावीर निर्वाण काल पालन मुनियों के लिये पूर्णरूप से महाव्रतरूप बतलाया तथा गृहस्थों के लिए स्थूलरूप-अणुव्रत रूप । गृहस्थों के भी उन्होंने श्रद्धान् मात्र से लेकर, कोपीनमात्र धारी होने तक के ग्यारह दर्जे नियत किये । दोषों और अपराधों के निवारणार्थ उन्होंने नियमित प्रतिक्रमण पर जोर दिया।
भगवान महावीर द्वारा उपदिष्ट तत्वज्ञान को संक्षेप में इस प्रकार व्यक्त किया जा सकता है:- जीव और अजीव अर्थात् चेतन और जड़, ये दो विश्व के मूल तत्व हैं, जो आदितः परस्पर संबंद्ध पाये जाते हैं, और चेतन की मनवचन व कायात्मक क्रियाओं द्वारा इस जड़-चेतन संबन्ध की परम्परा प्रचलित रहती है। इसे ही कर्माश्रव व कर्मबंध कहते हैं । यर्मो, नियमों के पालन द्वारा इस कर्माश्रव की परम्परा को रोका जा सकता है, एवं संयम व तप द्वारा प्राचीन कर्मबंध का नष्ट किया जा सकता है। इस प्रकार चेतन का जड़ से सर्वथा मुक्त होकर, अपना अनन्तज्ञान-दर्शनात्मक स्वरूप प्राप्त कर लेना ही जीवन का परम लक्ष्य होना चाहिये, जिससे इस जन्म-मृत्यु की परम्परा का विच्छेद होकर मोक्ष या निर्वाण की प्राप्ति हो सके।
महावीर ने अपने उपदेश का माध्यम उस समय उनके प्रचार क्षेत्र में सुप्रचलित लोकभाषा अर्द्धमागधी को बनाया। इसी भाषा में उनके शिष्यों ने उनके उपदेशों को आचारांगादि बारह अंगों में संकलित किया जो द्वादशांग आगम के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
महावीर निर्वाण काल
जैन परम्परानुसार महावीर का निर्वाण विक्रम काल से ४७० वर्ष पूर्व तथा शक काल से ६०५ वर्ष पांच मास पूर्व हुआ था, जो सन् ईसवी से ५२७ वर्ष पूर्व पड़ता है । यह महावीर निर्वाण संवत् आज भी प्रचलित है और उसके ग्रन्थों व शिलालेखों में उपयोग की परम्परा, कोई पांचवी छठवीं शताब्दी से लगातार पाई जाती है। इसमें सन्देह उत्पन्न करने वाला केवल एक हेमचन्द्र के परिशिष्ट पर्व का उल्लेख है जिसके अनुसार महावीर निर्वाण से १५५ वर्ष पश्चात् चन्द्रगुप्त (मोर्य) राजा हुआ । और चूकि चन्द्रगुप्त से विक्रमादित्य का काल सर्वत्र २५५ वर्ष पाया जाता है, अतः महावीर निर्वाण का समय विक्रम से २२५ + १५५ = ४१० वर्ष पूर्व (ई० पू० ४६७) ठहरा । याकोबी, चाटियर आदि पाश्चात्य विद्वानों का यही मत है । इसके विपरीत डा० जायसवाल का मत है कि चूंकि निर्वाण से ४७० वर्ष पश्चात् विक्रम का जन्म हुआ और १८ वर्ष के होने पर उनके राज्याभिषेक से उनका संवत् चला, अतएव विक्रम संवत् के ४७० +१८ = ४८८ वर्ष पूर्व वीर निर्वाण काल मानना चाहिये । वस्तुतः
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