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________________ २४ जैन धर्म का उद्गम और विकास है, जिसमें 'वैशाली नाम कुडे' ऐसा उल्लेख है। इन सब प्रमाणों के आधार पर बहुसंख्यक विद्वानों ने इसी वासु-कुन्ड को प्राचीन कुन्डपुर व महावीर की सच्ची जन्म भूमि स्वीकार कर लिया है, व इसी आधार पर वहां के उक्त क्षेत्र को अपने अधिकार में लेकर, बिहार राज्य ने वहां महावीर स्मारक स्थापित कर दिया है, और वहाँ एक अर्द्धमागधी पद्यों में रचित शिलालेख में यह स्पष्ट घोषणा कर दी है कि यही वह स्थल है, जहां भगवान महावीर का जन्म हुआ था। इसी स्थल के समीप बिहार राज्य ने प्राकृत जैन विद्यापीठ को स्थापित करने का भी निश्चय किया है। महावीर के जीवन संबंधी कुछ घटनाओं के विषय पर दिगम्बर और श्वेताम्बर परम्पराओं में थोड़ा मतभेद है। दिगम्बर परम्परानुसार वे तीस वर्ष की अवस्था तक कुमार व अविवाहित रहे और फिर प्रवजित हुए। किन्तु श्वेताम्बर परम्परानुसार उनका विवाह भी हुआ था और उनके एक पुत्री भी उत्पन्न हुई थी, तथा इनका जामाता जामाली भी कुछ काल तक उनका शिष्य रहा था। प्रवजित होते समय दिगम्बर परम्परानुसार उन्होंने समस्त वस्त्रों का परित्याग कर अचेल दिगम्बर रूप धारण किया था किन्तु श्वेताम्बर परम्परानुसार उन्होंने प्रवजित होने से डेढ़ वर्ष तक वस्त्र सर्वथा नहीं छोड़ा था। डेढ़ वर्ष के पश्चात् ही वे अचेलक हुए । बारह वर्ष की तपश्चर्या के पश्चात् उन्हें ऋजुकुला नदी के तट पर केवलज्ञान प्राप्त हुआ और फिर तीस वर्ष तक नाना प्रदेशों में विहार करते हुए, व उपदेश देते हुए, उन्होंने अपने तीर्थ की स्थापना की, यह दोनों सम्प्रदायों को मान्य है। किंतु उनका प्रथम उपदेश दिगम्बर मान्यतानुसार राजगृह के विपुलाचल पर्वत पर हुआ था तथा श्वेताम्बर मान्यतानुसार पावा के समीप एक स्थल पर, जहां हाल ही में एक विशाल मंदिर बनवाया गया है । दोनों परम्पराओं के अनुसार भगवान् का निर्वाण बहत्तर वर्ष की आयु में पावापुरी में हुआ। यह स्थान पटना जिले में बिहारशरीफ के समीप लगभग सात मील की दूरी पर माना जाता है, जहाँ सरोवर के बीच एक भव्य मंदिर बना हुआ है। महावीर की संघ-व्यवस्था और उपदेश ___ महावीर भगवान् ने अपने अनुयायियों को चार भागों में विभाजित किया-मुनि, आर्यिका, श्रावक व श्राविका । प्रथम दो वर्ग गृहत्यागी परिव्राजकों के थे और अंतिम दो गृहस्थों के । यही उनका चतुर्विध-संघ कहलाया। उन्होंने मुनि और गृहस्थ धर्म की अलग अलग व्यवस्थाए बांधी। उन्होंने धर्म का मूलाधार अहिंसा को बनाया और उसी के विस्तार रूप पांच व्रतों को स्थापित किया - अहिंसा, अमृषा, अचौर्य, अमैथुन और अपरिग्रह । इन व्रतों या यमों का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001705
Book TitleBharatiya Sanskruti me Jain Dharma ka Yogdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherMadhyapradesh Shasan Sahitya Parishad Bhopal
Publication Year1975
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Culture, Religion, literature, Art, & Philosophy
File Size10 MB
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