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जैन कला
विशारद आश्चर्यचकित होकर दांतों तले अंगुली दबाये बिना नहीं रहते । यहां भारतीय शिल्पियों ने जो कला-कौशल व्यक्त किया है, उससे कला के क्षेत्र में भारत का मस्तिष्क सदैव गर्व से ऊंचा उठा रहेगा। कारीगर की छैनी ने यहाँ काम नहीं दिया । संगमरमर को घिस घिस कर उसमें वह सूक्ष्मता व कांच जैसी चमक व पारदर्शिता लाई गई है, जो छैनी द्वारा लाई जानी असम्भव थी। कहा जाता है कि इन कारीगरों को घिसकर निकाले हुए संगमरमर के चूर्ण के प्रमाण से वेतन दिया जाता था। तात्पर्य यह कि इन मन्दिरों के निर्माण से, एच० जिम्मर के शब्दों में, "भवन ने अलंकार का रूप धारण कर लिया है, जिसे शब्दों में समझाना असम्भव है।" मन्दिरों का दर्शन करके ही कोई उनकी अद्भुत कला के सौन्दर्य की अनुभूति कर सकता है । बिना देखे उसकी कोई कल्पना करना शक्य नहीं।
लूणवसही से पीछे की ओर पित्तलहर नामक जैन मन्दिर है, जिसे गुर्जर वंश के भीमाशाह ने १५ वीं शती के मध्य में बनवाया। यहां के वि० सं० १४८३ के एक लेख में कुछ भूमि व ग्रामों के दान दिये जाने का उल्लेख है, तथा वि० सं० १४८६ के एक अन्य लेख में कहा गया है कि आबू के चौहानवंशी राजा राजधर देवड़ा चुडा ने यहां के तीन मन्दिरों अर्थात् विमलवसही, लूण. वसही और पित्तलहर-की तीर्थयात्रा को आने वाले यात्रियों को सदैव के लिये कर से मुक्त किया। इस मंदिर का पित्तलहर नाम पड़ने का कारण यह है कि यहां मूलनायक आदिनाथ तीर्थंकर की १०८ मन पीतल की मूर्ति प्रतिष्ठित है। इस मूर्ति की प्रतिष्ठा सं० १५२५ में सुन्दर और गडा नामक व्यक्तियों ने कराई थी। गुरु-गुण-रत्नाकर काव्य के अनुसार, ये दोनों अहमदाबाद के तत्कालीन सुल्तान महमूद बेगड़ा के मन्त्री थे। इससे पूर्व की प्रतिष्ठित मूर्ति किसी कारणघश यहां से मेवाड़ के कुम्भल मेरु नामक स्थान को पहुंचा दी गई थी। इस मन्दिर की बनावट भी पूर्वोक्त दो मन्दिरों जैसी ही है। मूल गर्भगृह, गूढ़मण्डप और नव-चौकी तो परिपूर्ण है, किन्तु रंग-मण्डप और भमिति कुछ अपूर्ण ही रह गये हैं । गूढ़मण्डप में आदिनाथ की पंचतीथिक पाषाण प्रतिमा है, तथा अन्य तीर्थकर प्रतिमाएं हैं। विशेष ध्यान देने योग्य यहां महावीर के प्रमुख गणधर गौतम स्वामी की पीले पाषाण की मूर्ति है। भमिति की देवकुलिकाओं में नाना तीर्थंकरों की मूर्तियां विराजमान है। एक स्थान पर भ. आदिनाथ के गणधर पुंडरीक स्वामी की प्रतिमा भी है।
चौमुखा मंदिर में भगवान् पाश्वनाथ की चतुमुखी प्रतिमा प्रतिष्ठित है। इस मूर्ति की प्रतिष्ठा खरतर गच्छ के मुनियों द्वारा कराई जाने से यह मंदिर
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