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जैन मन्दिर
प्रकृति की शोभा का वास्तुकला के साथ ऐसा सुन्दर सामंजस्य हुआ हो ।”
मध्यप्रदेश का तीसरा जैन तीर्थ दमोह के समीप कुंडलपुर नामक स्थान है, जहां एक कुडलाकार पहाड़ी पर २५-३० जैन मंदिर बने हुए हैं। पहाड़ी के मध्य एक घाटी में बना हुआ महावीर का मंदिर अपनी विशालता, प्राचीनता व मान्यता के लिये विशेष प्रसिद्ध है। यहां बड़ेबाबा महावीर की विशाल मूर्ति होने के कारण यह बड़ेबाबा का मंदिर कहलाता है । पहाड़ी पर का प्रथम मंदिर भी अपने सौन्दर्य व रचना की दृष्टि से महत्वपूर्ण है । अपने शिखर के छह तल्लों के कारण यह छह घरिया का मंदिर कहलाता है । अधिकांश मंदिरों में पूर्वोक्त तीर्थ-क्षेत्रों के सदश मुगलशैली का प्रभाव दिखाई देता है। पहाड़ी के नीचे का तालाब और उसके तटवर्ती नये मंदिरों की शोभा भी दर्शनीय हैं ।
मध्यप्रदेश के जिला नगर खरगोन से पश्चिम की ओर दस मील पर ऊन नामक ग्राम में तीन-चार प्राचीन जैन मन्दिर हैं। इनमें से एक पहाड़ी पर है जिसकी मरम्मत होकर अच्छा तीर्थस्थान बन गया है शेष मन्दिर भग्नावस्था में पुरातत्व विभाग के संरक्षण में हैं। मन्दिर पूर्णतः पाषाण-खंडों से निर्मित चपटी छत व गर्भगृह और सभामंडप युक्त तथा प्रदक्षिणा-रहित हैं जिनसे उनकी प्राचीनता सिद्ध होती है। भित्तियों और स्तम्भों पर सर्वांग उत्कीर्णन है जो खजुराहो के मन्दिरों की कला से मेल खाता है। चतुर्दार होने से दो मन्दिर चौबारा डेरा कहलाते हैं। खंभों पर की कुछ पुरुष-स्त्री रूप प्राकृतियां शृंगारात्मक अतिसुन्दर और पूर्णतः सुरक्षित है। कुछ प्रतिमाओं पर लेख हैं जिनमें संवत् १२५८ व उसके आसपास का उल्लेख है । अतः यह तीथं कम से कम १२-१३ वीं शती का तो अवश्य है। इस तीर्थ स्थान को प्राचीन सिद्धक्षेत्र पावागिरि ठहराया गया है जिसका प्राकृत निर्वाणकाण्ड में निम्न प्रकार दो बार उल्लेख आया है:
रायसुआ वेण्णि जणा लाड-णरिंदाण पंच-कोडीओ । पावागिरि-वर-सिहरे णिव्वाण गया णमो तेसि ।।५।। पावागिरि-वर-सिहरे सुवण्णभद्दाइ-मुणिवरा चउरो।
चलणा-णई-तडग्गे णिव्वाण गया णमो तेसि ॥१३॥ यहां पावागिरि से लाट (गुजरात) के नरेशों तथा सुवर्णभद्रादि चार मुनियों द्वारा निर्वाण प्राप्त किये जाने का उल्लेख है। यह प्रदेश गुजरात से लगा हुआ है। उल्लिखित चलना या चेलना नदी संभवतः ऊन के समीप बहने वाली वह सरिता है जो अब चंदेरी या चिरूढ कहलाती है। नि. कां. की उप
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