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________________ ३३० जैन कला ग्वालियर राज्य में विदिशा से १४० मील दक्षिण-पश्चिम की ओर ग्यारसपुर में भी एक भग्न जैन मन्दिर का मंडप विद्यमान है, जो अपने विन्यास व स्तम्भों की रचना आदि में खजराहो के घंटाई मंडप के ही सदृश है । उसका निर्माण-काल भी फर्गुसन साहब ने सातवीं शती, अथवा निश्चय ही १० वीं शती से पूर्व, अनुमान किया है । इसी ग्यारसपुर में संभवतः इसी काल का एक अन्य मन्दिर भी है जो इतना जीर्ण-शीर्ण हो गया है और उसका जीणोद्धार इस तरह किया गया है कि उसका समस्त मौलिक रूप ढंक गया है । यहाँ ग्राम में एक संभवतः ११ वीं शती का अतिसुन्दर पाषाण-तोरण भी है। यथार्थतः फर्गुसन साहब के मतानुसार वहां आसपास के समस्त प्रदेश में इतने भग्नावशेष विद्यमान है कि यदि उनका विधिवत् संकलन व अध्ययन किया जाय तो भारतीय वास्तु-कला, और विशेषतः जैन वास्तु-कला, के इतिहास के बड़े दीर्घ रिक्त स्थानों की पूर्ति की जा सकती है । ___ मध्यप्रदेश में तीन और जैन तीर्थ हैं जहाँ पहाड़ियों पर अनेक प्राचीन मन्दिर बने हुए हैं, और आज तक भी नये मन्दिर अविच्छिन्न कम से बनते जाते हैं। ऐसा एक तीर्थ बुन्देलखण्ड में दतिया के समीप सुवर्णगिरि (सोनागिरि) है। यहां एक नीची पहाड़ी पर लगभग १०० छोटे-बड़े एवं नाना आकृतियों के जैन मन्दिर हैं। जिस रूप में ये मन्दिर विद्यमान हैं वह बहुत प्राचीन प्रतीत नहीं होता। उसमें मुसलमानी शैली का प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है। उनके शिखर प्राय: मुगलकालीन गुम्बज के आकार के हैं । शिखर का प्राचीन स्वदेशीय रूप क्वचित् ही दष्टिगोचर होता है, और खुले भागों का रूप मुसलमानी कोणाकार तोरण जैसा दिखाई देता है । यद्यपि इसका इतिहास स्पष्ट नहीं है कि इस तीर्थक्षेत्र में प्राचीनतम मन्दिर कब, क्यों और कैसे बने तथापि इसकी कुछ सामग्री वहाँ के उक्त मन्दिरों, मूर्तियों व लेखों के अध्ययन से संकलित की जा सकती है। दूसरा तीर्थक्षेत्र बैतूल जनपदान्तर्गत मुक्तागिरि है । यहाँ एक अतिसुन्दर पहाड़ी की घाटी के समतल भाग में कोई २०-२५ जैन मन्दिर हैं, जिनके बीच लगभग ६० फुट ऊँचा जलप्रपात है । इसका दृश्य विशेषतः वर्षाकाल में अत्यन्त रमणीक प्रतीत होता है । ये मन्दिर भी सोनागिरि के समान बहुत प्राचीन नहीं हैं, और अपने शिखर मादि के संबंध में मुसलमानी शैली का अनुकरण करते हैं। किन्तु यहां की मूर्तियों पर के लेखों से ज्ञात होता है कि १४ वीं शती में यहां कुछ मंदिर अवश्य रहे होंगे। इस तीर्थ के विषय में श्री जेम्स फर्गुसन साहब ने अपनी हिस्ट्री प्रॉफ इंडिया एन्ट ईस्टर्न आर्किटेक्चर (लंदन, १८७६) में कहा है कि "समस्त भारत में इसके सदृश दूसरा स्थान पीना दुर्लभ है, जहां Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001705
Book TitleBharatiya Sanskruti me Jain Dharma ka Yogdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherMadhyapradesh Shasan Sahitya Parishad Bhopal
Publication Year1975
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Culture, Religion, literature, Art, & Philosophy
File Size10 MB
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