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मथुरा का स्तूप
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का ताम्रपत्र मिला है, उसमें इस पंचस्तूपान्वय का उल्लेख है । धवलाटीका के के कर्ता वीरसेनाचार्य व उनके शिष्य महापुरुष के कर्ता जिनसेन ने अपने को पंचस्तूपान्वयी कहा है । इसी अन्वय का पीछे सेनअन्वय नाम प्रसिद्ध हुआ पाया जाता है। जिनप्रभसूरी कृत विविध-तीर्थ-कल्प में उल्लेख है कि मथुरा में एक स्तूप सुपार्श्वनाथ तीर्थंकर की स्मृति में एक देवी द्वारा प्रतिप्राचीन काल में बन वाया गया था, व पार्श्वनाथ तीर्थंकर के समय में उसका जीर्णोद्धार कराया गया था, तथा उसके एक हजार वर्ष पश्चात् पुनः उसका उसका उदार बप्पभट्टि सूरि द्वारा कराया गया था। राजमल्ल कृत जंबूस्वामिचरित के अनुसार उनके समय में (मुगल सम्राट अकबर के काल में) मथुरा में ५१५ स्तूप जीर्ण-शीर्ण अवस्था में विद्यमान थे, जिनका उद्धार तोडर नाम के एक धनी साह ने अगणित द्रव्य व्यय करके कराया था। मथुरा के कंकाली टीले की खुदाई से प्राप्त हए भग्नावशेषों में एक जिन-सिंहासन पर के (दूसरी शती के) लेख में यहां के देवनिर्मित स्तूप का उल्लेख है। इसका समर्थन पूर्वोक्त हरिषेण व जिनप्रभ सूरि के उल्लेखों से भी होता है। हरिभद्रसूरी क़त आवश्यक-नियुक्ति-वृत्ति तथा सोमदेव कत यशस्तिलक-चम्पू में भी मथुरा के देवनिर्मित स्तूप का वर्णन आया है। इन सब उल्लेखों से इस स्तूप की अतिप्राचीनता सिद्ध होती है ।
मथुरा का स्तूप___ मथुरा के स्तूप का जो भग्नांश प्राप्त हुआ है, उससे उसके मूल-विन्यास का स्वरूप प्रगट हो जाता है । स्तूप का तलभाग गोलाकार था, जिसका व्यास ४७ फूट पाया जाता है। उसमें केन्द्र से परिधि की अोर बढ़ते हुए व्यासार्ध वाली ८ दिवालें पाई जाती है, जिनके बीच के स्थान को मिट्टी से भरकर स्तूप ठोस बनाया गया था। दीवालें ईटों से चुनी गई थी। ईट भी छोटी-बड़ी पाई जाती हैं। स्तूप के बाह्य भाग पर जिन-प्रतिमाएं बनी थी। पूरा स्तूप कैसा था, इसका कुछ अनुमान बिखरी हुई प्राप्त सामग्री के आधार पर लगाया जा सकता है। अनेक प्रकार की चित्रकारी युक्त जो पाषाण-स्तंभ मिले हैं, उनसे प्रतीत होता है कि स्तूप के आसपास घेरा व तोरण द्वार रहे होंगे । दो ऐसे भी आयाग पट्ट मिले हैं, जिन पर स्तूप की पूर्ण प्राकृतियां चित्रित हैं, जो संभवतः यहीं के स्तूप व स्तूपों की होंगी। स्तूप पट्टिकाओं के घेरे से घिरा हुआ है, व तोरण द्वार पर पहुँचने के लिये सात-माठ सीढ़ियां बनी हुई हैं। तोरण दो खंभों व ऊपर थोड़े-थोड़े अन्तर से एक पर एक तीन आड़े खंभों से बना हैं। इनमें सबसे निचले खंभे के दोनों पाश्वंभाग मकराकृति सिंहों से आधारित हैं । स्तूप के दायें-बायें दो सुन्दर स्तंभ हैं, जिव पर क्रमशः धर्मचक्र व नैठे हुए सिंहों
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