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जैन दर्शन
शरीरधारी संसारी जीव अपने-अपने कर्मानुसार भिन्न-भिन्न लिंगधारी होते हैं । एकेन्द्रिय से लेकर चतुरिन्द्रिय तक के तिर्यच एवं नारकी जीव नियम से नपुसक होते हैं । पंचेन्द्रिय मनुष्य और तिर्यच पुरुष-वेदी, स्त्रीवेदी न नसेक वेदी तीनों प्रकार के होते हैं । देवों में नपुसक नहीं होते । उनके केवल देव और देवियां, ये दो ही भेद हैं । __ जीवों का शरीरधारण रूप जन्म भी नानाप्रकार से होता है। मनुष्य व तिर्यच जीवों का जन्म दो प्रकार से होता है-गर्भ से या सम्मूर्छण से । जो प्राणी माता के गर्भ से जरायु-युक्त अथवा अण्डे या पोत (जरायु रहित अवस्था) रूप में उत्पन्न होते हैं, वे गर्भज हैं, और जो गर्भ के बिना बाह्य संयोगों द्वारा शीत ऊष्ण आदि अवस्थाओं में जीवों की उत्पत्ति होती है, उसे सम्मूर्छन जन्म कहते हैं । देव और नारकी जीवों की उत्पत्ति उक्त दोनों प्रकारों से भिन्न उपपाद रूप बतलाई गई है। 'अजीव तत्व-- ___अजीव द्रव्यों के पांच भेद हैं-पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल । इनमें रूपवान द्रव्य पुद्गल है, और शेष सब अरूपी हैं। जितने भी मूर्तिमान पदार्थ विश्व में दिखाई देते हैं, वे सब पुद्गल दव्य के ही नाना रूप हैं । पृथ्वी, जल, अग्नि और वायु-ये चारों तत्व, वृक्षों. पशु-पक्षी आदि जीवों व मनुष्यों के शरीर, ये सब पुद्गल के ही रूप हैं। पुद्गल का सूक्ष्मतम रूप परमारण है, जो अत्यन्त लघु होने के कारण इन्द्रिय-ग्राह्य नहीं होता। अनेक परमाणुओं के संयोग से उनमें परिमाण उत्पन्न होता है और उनमें स्पर्श, रस, गंध व वर्णये चार गुण प्रकट होते हैं, तभी वह पुद्गल-स्कन्ध (समूह) इन्द्रिय-ग्राम होता है । शब्द, बंध, सूक्ष्मता, स्थूलता, संस्थान, अन्धकार छाया व प्रकाश ये सब पुद्गल द्रव्य के ही विकार माने गये हैं। पुद्गलों का स्थूलतम रूप महान् पर्वतों व पृथिवियों के रूप में दिखाई देता है । इनसे लेकर सूक्ष्मतम कर्म-परमाणुओं तक पुद्गल द्रश्य के असंख्यात भेद और रूप पाये जाते हैं। पुद्गल स्कन्धों का भेद और संघात निरन्तर होता रहता है। और इसी पूरण व गलन के कारण इनका पुद्गल नाम सार्थक होता है। पुद्गल शब्द का उपयोग जैन सिद्धान्त के अतिरिक्त बौद्ध ग्रन्थों में भी पाया जाता है, किन्तु वहां उसका अर्थ केवल शरीरी जीवों से है । अचेतन जड़ पदार्थों के लिये वहां पुद्गल शब्द का प्रयोग नहीं पाया जाता। धर्म-द्रव्य
दूसरा अजीवद्रव्य धर्म है । यह अरूपी है, और समस्त लोक में व्याप्त है।
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