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जैन धर्म का उद्गम और विकास
लोगों को हिंस्त्र पशुओं से अपनी रक्षा करने के उपाय बताये । भूमि व वृक्षों के वैयाक्तिक स्वामित्व की सीमाएं निर्धारित की। हाथी आदि वन्य पशुओं का पालन कर, उन्हें वाहन के उपयोग में लाना सिखाया । बाल-बच्चों के लालन-पालन व उनके नामकरण आदि का उपदेश दिया । शीत तुषार आदि से अपनी रक्षा करना सिखाया । नदियों को नौकाओं द्वारा पार करना, पहाड़ों पर सीढ़ियाँ बनाकर चढ़ना, वर्षा से छत्रादिक धारण कर अपनी रक्षा करना आदि सिखाया और अन्त में कृषि द्वारा अन्न उत्पन्न करने की कला सिखाई, जिसके पश्चात् वाणिज्य, शिल्प आदि वे सब कलाएं व उद्योग धन्धे उत्पन्न हुए जिनके कारण यह भूमि कर्मभूमि कहलाने लगी।
चौदह कुलकरों के पश्चात् जिन महापुरुषों ने कर्मभूमि की सम्यता के युग में धर्मोपदेश व अपने चारित्र द्वारा अच्छे बुरे का भेद सिखाया, ऐसे त्रेसठ महापुरुष हुए, जो शलाका पुरुष अर्थात् विशेष गणनीय पुरुष माने गये हैं, और उन्हीं का चरित्र जैन पुराणों में विशेष रूप से वणित पाया जाता है। इन त्रेसठ शलाका पुरुषों में चौबीस तीर्थंकर, बारह चक्रवर्ती, नौ बलभद्र, नौ नारायण और नौ प्रति-नारायण सम्मिलित हैं, जिनके नाम इस प्रकार हैं
___ २४ तीर्थंकर:- १-ऋषभ, २-अजित, ३-संभव, ४-अभिनंदन, ५-सुमति, ६-पद्मप्रभ, ७-सुपार्श्व, ८-चन्द्रप्रभ, ९-पुष्पदंत, १०-शीतल, ११-श्रेयांस, १२-वासुपूज्य,१३-विमल, १४-अनन्त, १५-धर्म, १६-शान्ति, १७-कुन्थु, १८-अरह १६-मल्लि, २०-मुनिसुव्रत, २१-नमि, २२-नेमि, २३-पार्श्वनाथ, २४-वर्धमान अथवा महावीर ।
१२ चक्रवर्तीः- २५-भरत, २६-सगर, २७-मघवा, २८-सनत्कुमार, २६-शान्ति, ३०-कुन्थु, ३१-अरह, ३२-सुभौम, ३३-पद्म, ३४-हरिषेण ३५-जयसेन, ३६-ब्रह्मदत्त ।
६ बलभद्र :- ३७-अचल, ३८-विजय, ३६-भद्र, ४०-सुप्रभ, ४१-सुदर्शन, ४२-आनन्द, ४३-नन्दन, ४४-पद्म, ४५-राम ।
वासुदेव-४६-त्रिपृष्ठ, ४७-द्विपृष्ठ, ४८-स्वयम्भू, ४६-पुरुषोत्तम, ५०-पुरुषसिंह, ५१-पुरुषपुण्डरीक, ५२-दत्त, ५३-नारायण, ५४-कृष्ण ।
६ प्रति-वासुदेवः- ५५-अश्वग्रीव, ५६-तारक, ५७-मेरक, ५८-मधु, ५६-निशुम्भ, ६०-बलि, ६१-प्रहलाद, ६२-रावण, ६३–जरासंघ ।
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