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महाराष्ट्री प्राकृत
भो भो मत्त महागय, एत्थारणे तुमे भमन्तेणं । महिला सोमसहावा, जइ दिट्ठा किं न साहेहि ॥ ८ ॥ तरुवर तुमपि वच्चसि, दूरुन्नयवियडपत्तलच्छाय । एत्थं अपुव्वविलया, कह ते नो लक्खिया रणे ॥६॥ सोऊण चक्कवाई, वाहरमाणी सरस्स मज्झत्था 1 महिलासंकाभिमुहो, पुणो वि जाओ च्चिय निरासो ॥ १० ॥
( पउमचरियं, ४४, ५०-५८)
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(अनुवाद)
( रावण के सिंहनाद को लक्ष्मण का समझकर जब राम खरदूषण की युद्ध भूमि में पहुँचे, तब उन्हें देख लक्ष्मण ने कहा ) - हे महायश, इन शत्रुओं को जीतने के लिये तो मैं ही पर्याप्त हूँ, इसमें संदेह नहीं; आप अतिशीघ्र लोट जाइये और जल्दी-जल्दी अपनी कुटी पर आये; किन्तु उन्हें वहां जनक - सुता दिखाई न दी । तब वे सहसा मूच्छित हो गये । फिर चेतना जागृत होने पर वे वृक्षों के वन में अपनी दृष्टि फेंकने लगे, और सघन प्रेम से व्याकुल हृदय हो कहने लगे — हे सुन्दरी, जल्दी यहां आओ, मुझसे बोलो, देर मत करो; मैंने तुम्हें वृक्षों की वीहड़ में देख लिया है, अब देर तक परिहास क्यों कर रही हो ? कांत के वियोग में दुखी राघव ने उस अरण्य में ढूढते ढूंढते जटायु को देखा, जो पृथ्वी पर पड़ा तड़फड़ा रहा था । राम ने उस मरते हुए पक्षी के कान में णमोकार मंत्र का जाप सुनाया । उस शुभयोग से जटायु अपने उस प्रशुचि देह को छोड़कर देव हुआ। राम फिर भी प्रिया का स्मरण कर मूच्छित हो गये, व आश्वस्त होने पर हाय सीता, हाय सीता, ऐसा प्रलाप करते हुए उनकी खोज में परिभ्रमण करने लगे । हाथी को देखकर वे कहते हैं - हे मत्त महागज, तुमने इस अरण्य में भ्रमण करते हुए एक सौम्य स्वभाव महिला को यदि देखा है, तो मुझे बतलाते क्यों नहीं ? हे तरुवर, तुम तो खूब उन्नत हो, विकट हो और पत्रों की छाया युक्त हो; तुमने यहां कहीं एक अपूर्व स्त्री को देखा हो तो मुझे कहो ? राम ने सरोवर के मध्य से चकवी की ध्वनि सुनी, वे वहां अपनी पत्नी की शंका (आशा) से उस ओर बढ़े, किन्तु फिर भी वे निराश ही हुए ।
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