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प्रथमानुयोग-संस्कृत
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(१३ वीं शती) में १८०२ श्लोक २४ अध्यायों में विभाजित है, और उनमें क्रमशः २४ तीर्थंकरों का चरित्र वर्णन किया गया है। अमरचन्द्र की एक और रचना बालभारत भी है (प्र० बम्बई, १९२६)।
मेरुतुग कृत महापुराण-चरित के पांच सर्गों में ऋषभ, शांति, नेमि, पार्व और वर्द्धमान, इन पांच तीर्थंकरों का चरित्र वर्णित है। इस पर एक टीका भी है, जो सम्भवतः स्वोपज्ञ है और उसमें उक्त कृति को 'काव्योपदेश श तक' व 'धर्मोपदेश शतक' भी कहा गया है। मेरुतुग की एक अन्य रचना प्रबन्धचिन्तामणि १३०६ ई० में पूर्ण हुई थी, अतएव वर्तमान रचना भी उसी समय के आसपास लिखी गई होगी। पद्मसुन्दर कृत रायमल्लाभ्युदय (वि० सं० १६१५ अकबर के काल में चौधरी रायमल्ल की प्रेरणा से लिखा गया है, और उसमें २४ तीर्थंकरों का चरित्र वर्णित है । एक दामनन्दि कृत पुराणसार-संग्रह भी अभी दो भागों में प्रकाशित हुआ है, जिसमें शलाका पुरुषों का चरित्र अतिसंक्षेप में संस्कत पद्यों में कहा गया है। तीथंकरों के जीवन-चरित सम्बन्धी कुछ पृथक-पृथक संस्कृत काव्य इस प्रकार हैं :-प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ का जीवनचरित्र चतुविंशति-जिनचरित के कर्ता अमरचन्द्र ने अपने पदमानंद काव्य में १९ सर्गों में लिखा है। काव्य को उक्त नाम देने का कारण यह है कि वह पद्म नामक मंत्री की प्रार्थना से लिखा गया था । काव्य में कुल ६२८१ श्लोक हैं। (प्र० बड़ौदा, १९३२) आठवें तीर्थंकर चन्द्रप्रभ पर वीरनंदि, वासुपूज्य पर वर्द्धमान सूरि और विमलनाथ पर कृष्णदास रचित काव्य मिलते हैं। १५ वें तीर्थकर धर्मनाथ पर हरिचन्द्र कृत 'धर्मशर्माभ्युदय' एक उत्कृष्ट संस्कृत काव्य है, जो सुप्रसिद्ध संस्कृत काव्य माधकृत 'शिशुपाल वध' का अनुकरण करता प्रतीत होता है, तथा उस पर प्राकृत काव्य 'गउडवहो' एवं संस्कृत 'नैषधीय चरित' का भी प्रभाव दिखाई देता है । यह रचना ११ वी-१२ वीं शती की अनुमान की जाती है । १६ वें तीर्थंकर शांतिनाथ का चरित्र असग कृत (१० वीं शती), देवसूरि (१२८२ ई०) के प्रशिष्य अजितप्रभ कृत, माणिक्यचन्द्र कृत (१३ वीं शती) सकलकीर्ति कृत (१५ वीं शती), तथा श्रीभूषण कृत (वि० सं० १६५६) उपलब्ध हैं। विनयचन्द्र कृत मल्लिनाथ चरित ४००० से अधिक श्लोकप्रमाण पाया जाता है । २२ वें तीर्थंकर नेमिनाथ का चरित्र सूराचार्य कृत (११ वीं शती) और मलधारी हेमचन्द्र कृत (१३ वीं शती) पाये जाते है । वाग्भट्ट कृत नेमि-
निर्वाण काव्य (१२ वीं शती) एक उत्कृष्ट रचना है, जो १५ सगों में समाप्त हुई है । संगन के पुत्र विक्रम कृत नेमिदूतकाव्य एक विशेष कलाकृति है, जिसमें राजीमती के विलाप का वर्णन किया गया है। यह एक
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