SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 181
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन साहित्य १६८ काव्य की रचना हुई । यह गुजरात नरेश कुमारपाल की प्रार्थना से लिखा गया था, और ई० सन् ११६० व ११७२ के बीच पूर्ण हुआ । इसमें दस पर्व हैं, जिनमें उक्त चौबीस तीर्थंकरादि त्रेसठ महापुरुषों का चरित्र वर्णन किया गया है । ग्रन्थ के सातवें पर्व में राम कथा वर्णित है, जिसमें प्राकृत 'पउमचरियं तथा संस्कृत पद्मपुराण का अनुसरण किया गया है । दसवें पर्व में महावीर तीर्थंकर का जीवन चरित्र वर्णित है, जो स्वतंत्र प्रतियों के रूप में भी पाया जाता है । इसमें सामान्यतः श्राचारांग व कल्पसूत्र में वर्णित वृत्तान्त समाविष्ट किया गया है । हां, मूल घटनानों का विस्तार व काव्यत्व हेमचन्द्र का अपना है। यहां महावीर के मुख से वीर निर्वाण से १६६९ वर्ष पश्चात् होने वाले आदर्श नरेश कुमारपाल के सम्बन्ध की भविष्य वाणी कराई गई है। इसमें राजा श्रेणिक, युवराज अभय एवं रोहिणेय चोर आदि की उपकथाएं भी अनेक भाई हैं । इस ग्रन्थ का अन्तिम भाग परिशिष्ट पर्व यथार्थतः | एक स्वतंत्र ही रचना है, और वह ऐतिहासिक दृष्टि से बड़ी महत्वपूर्ण है । इसमें महावीर के पश्चात् उनके केवली शिष्यों तथा दशपूर्वी आचार्यों की परम्परा पाई जाती है । इस भाग को ' स्थविरावली चरित' भी कहते हैं । यह केवल आचार्यों की नामावली मात्र नहीं है, किन्तु यहाँ उनसे संबद्ध नाना लम्बी लम्बी कथाएं भी कही गई हैं, जो उनसे पूर्व आगमी की नियुक्ति, भाष्य, चूर्णि आदि टीकाओं से और कुछ सम्भवतः मौखिक परम्परा पर से संकलित की गई हैं । इनमें स्थूलभद्र भोर कोषा वेश्या का उपाख्यान, कुवेरसेना नामकगणिका के कुवेरदत्त और कुबेरदत्ता नामक पुत्रपुत्रियों में परस्पर प्रेम की कथा, आर्य स्वयम्भव द्वारा अपने पुत्र मनक के लिये दशवेकालिका सूत्र की रचना का वृत्तान्त, तथा आगम के संकलन से संबंध रखनेवाले उपाख्यान, नंद राजवंश संबंधी कथानक, एवं चाणक्य और चन्द्रगुप्त द्वारा उस राजवंश के मूलोच्छेद का वृतान्त आदि अनेक दृष्टियों से महत्वपूर्ण है । ग्रन्थकर्ता ने अपने इस पुराण को महाकाव्य कहा है । यद्यपि रचना बहुभाग कथात्मक है, और पुराणों की स्वाभाविक सरल शैली का अनुसरण करता है, तथापि उसमें अनेक स्थानों पर रस, भाव व अलंकारों का ऐसा समावेश है, जिससे उसका महाकाव्य पद भी प्रमाणित होता है । तेरहवीं शती में मालवा के सुप्रसिद्ध लेखक पंडित आशाधर कृत 'त्रिषष्ठि - स्मृति-शास्त्र' में भी उपर्युक्त ६३ शलाका पुरुषों का चरित्र अपेक्षाकृत संक्षेप से वर्णन किया गया है, जिसमें प्रधानतः जिनसेन और गुणभद्र कृत महापुराण का अनुसरण पाया जाता है । arashच्छीय जिनदत्तसूरि के शिष्य अमरचन्द्र कृप्त चतुर्विंशति-जिनचरित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001705
Book TitleBharatiya Sanskruti me Jain Dharma ka Yogdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherMadhyapradesh Shasan Sahitya Parishad Bhopal
Publication Year1975
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Culture, Religion, literature, Art, & Philosophy
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy