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________________ प्रथमानुयोग-प्राकृत १३१ उसे उन्होंने अनुपूर्वी से संक्षेप में कहा है (१, ८)। यहां स्पष्टतः कर्ता का संकेत उन नामावली-निबद्ध चरित्रों से है, जो समवायांग व तिलोयपण्णति में पाये जाते हैं। वे नामावलियां यथार्थतः स्मृति-सहायक मात्र हैं। उनके आधार से विशेष कथानक मौखिक गुरु-शिष्य परम्परा में अवश्य प्रचलित रहा होगा; और इसी का उल्लेख कर्ता ने प्राचार्य-परम्परागत कहकर किया है। जिन सूत्रों के आधार पर यह गाथात्मक काव्य रचा गया है, उनका निर्देश ग्रन्थ के प्रथम उद्देश में किया गया है। कवि को इस ग्रन्थ रचना की प्रेरणा कहाँ से मिली इसकी भी सूचना ग्रन्थ में पाई जाती है। श्रेणिक राजा ने गौतम के सम्मुख अपना यह सन्देह प्रकट किया कि वानरों ने अतिप्रबल राक्षसों का कैसे विनाश किया होगा? क्या सचमुच रावण आदि राक्षस और मांसभक्षी थे ? क्या सचमुच रावण का भाई कुम्भकर्ण छह महीने तक लगातार सोता था ? और निद्रा से उठकर भूखवश हाथी और भैंसे निगल जाता था? क्या इन्द्र संग्राम में रावण से पराजित हो सका होगा ? ऐसी विपरीत बातों से पूर्ण रामायण कवियों द्वारा रची गई है, क्या यह सच है ? अथवा तथ्य कुछ अन्य प्रकार है १ श्रेणिक के इस सन्देह के समाधानार्थ गौतम ने उन्हें ययार्थ रामायण का कथानक कहकर सुनाया (२, ३)। इस कथन से स्पष्ट है कि पउमचरिय के लेखक के सम्मुख वाल्मीकि कत रामायण उपस्थित थी और उसी से प्रेरणा पाकर उन्होंने अपने पूर्व साहित्य व गुरु परम्परा से प्राप्त कथा-सूत्रों को पल्लवित करके प्रस्तुत ग्रन्थ का निर्माण किया। पउमचरिय में स्वयं कर्ता के कथनानुसार सात अधिकार हैं। स्थिति, वंशोत्पत्ति, प्रस्थान' रण, लवकुश (लवणांकुश) उत्पत्ति, निर्वाण और अनेक भव । ये अधिकार उद्देशों में विभाजित हैं, जिनकी संख्या ११८ है। समस्त रचना प्राकृत गाथाओं में है ; किन्तु उद्देशों के अन्त में भिन्न भिन्न छन्दों का भी प्रयोग किया गया है। रचना प्रायः सर्वत्र सरल, धारावाही कथा-प्रधान है; किन्तु यत्र-तत्र उपमा आदि अलंकारों, सूक्तियों व रस-भावात्मक वर्णनों का भी समावेश पाया जाता है । इन विशेषताओं के द्वारा उसकी शैली भाषाभेद होने पर भी संस्कृत के रामायण महाभारत आदि पुराणों की शैली से मेल रखती है। इसमें काव्य का वह स्वरूप विकसित हुआ दिखाइ नहीं देता जिसमें अलंकारिक वर्णन व रस-भाव-निरूपण प्रधान, और कथा भाग गौण हो गया है । प्रथम २४ उद्देशों में मुख्यत: विाद्यधर और राक्षस वंशों का विवरण दिया गया है। राम के जन्म से लेकर, उनके लंका से लौटकर राज्याभिषेक तक अर्थात्, रामायण का मुख्य भाग २५ से ८५ तक के ६१ उद्देशों में वर्णित है। ग्रन्थ के शेष भाग में सीता-निर्वासन (उद्देश ९४), लवणंकुश-उत्पत्ति, देश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001705
Book TitleBharatiya Sanskruti me Jain Dharma ka Yogdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherMadhyapradesh Shasan Sahitya Parishad Bhopal
Publication Year1975
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Culture, Religion, literature, Art, & Philosophy
File Size10 MB
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