________________
सं०
'र्थ' को 'स्त' अर्थपति
सार्थवाह
'स्थ' को 'स्त' उपस्थित
सुस्थित
'डम" को 'प'
'क्म' को 'प' 'प' २ को 'प्प'
( ७१ )
मा०
श्रस्तवदि
शस्तवाह
उवस्तिद
सुस्तिद
सुहि ।
( पालि भाषा में 'स्त' को 'थ' और 'त्थ' होता है। देखिये - पा०
प्र० पृ० २७ )
११.
Jain Education International
'प' विधान
ято
त्थवई ।
सत्थवाह ।
उहि ।
कुड्मल- कुंपल ।
रुक्म- रुप्प | रुक्मिणी- रुपिणी । रुक्मो- रुप्पी, रुच्मी । निष्पाप - निप्पाव । निष्पुंसन- निप्पुंस ।
निष्प्रभ - निष्पह | निष्प्राण - निष्पाण |
परस्पर - परोप्पर । बृहस्पति - बुहप्पर । निष्पृह-निष्पिह |
'स्प' को 'प'
( पालि भाषा में 'हम' को 'डुम' और 'क्म' को 'कुम' होता है । देखिये- पा० प्र० पृ० ४९ कुडमल - कुडुमल अथवा कुटुमल । रुक्मरुकुम तथा रुक्म देखिये, पा० प्र० पृ० ४३ टिप्पण )
१२.
'फ' विधान
'प' ३ को 'फ' निष्पाव- निष्फाव । निष्पेष - निप्फेस | पुष्प - पुण्फ । शष्प-सफ
'स्प' को 'फ'
'स्प' को 'फ' १. हे० प्रा०
व्या० ८ २५२ । २. हे० प्रा० व्या० ८|२|५३ । ३. हे० प्रा० व्या० ८/२/५३ ।
स्पन्दन - फंदण | स्पन्द- फंद | स्पर्धा-फदा । स्पन्दते - फंदए । स्पर्धते - फद्धए ।
प्रतिस्पर्धी - पडिफद्धी । प्रतिस्पर्धा-पडिएफद्धा ।
For Private & Personal Use Only
-
www.jainelibrary.org