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________________ ( ७० ) जहु - जयहु । वह्नि - वरिह । अपराह्न - श्रवरह । पूर्वाह्न पुग्वराह । तीक्ष्ण - विरह | लक्ष्ण - सह । सूक्ष्म - सह । ( पैशाची भाषा में स्न के स्थान में 'सिन" बोला जाता है । ) 'ह' को 'ह' को 'ह' 'दण' को 'ह' 'दम' को 'ह' पै० ЯТО सिनात व्हाय स्नुषा सिनुसा, सुनुषा हुसा, सुद्दा ! ( पालि भाषा में इस रूपान्तर के लिए देखिये -- क्रमशः प्रा० प्र० पृ० ४६ ( नि० ६३ ) तथा पृ० ४७ श्न = एह, ञ्ह तथा ष्ण-राह पृ० ४८ टिप्पण - तीक्ष्ण-तिरह, तिक्ख, तिक्खिण तथा पृ० ४९ टिप्पणपूर्वाह्न - पुण्वण्ह । ) • सं० स्नान ( पालि भाषा में स्नान - सिनान । स्नुषा - सुणिसा, सुण्डा, हुसा ऐसे तीन रूप होते हैं। देखिये- पा० प्र० पृ० ४६ नियम ६३ । ) 'थ' विधान १० 'स्त २' को 'थ' स्तव - थव, तव । स्तम्भ - थंभ | स्तब्ध - थद, ठद्ध | स्तुति थुई । स्तोक-थो । स्तोत्र - थोत्त । स्त्यान - थीण । 'स्व' को 'त्थ' अस्ति - श्रत्थि । पर्यस्त - पल्लत्थ, पल्लव | प्रशस्तपसत्थ । प्रस्तर - पत्थर । स्वस्ति-सत्थि । हस्त - हत्थ । ( श्रपवादः - समस्त - समत्त, सम्ब-तब ) (मागधी भाषा में 'र्थ' तथा 'स्थ' के स्थान में 'स्त' ३ बोला जाता है) १. हे० प्रा० व्या० ८|४| ३१४ । २ है० प्रा० व्या०८।२।४५ | ३. हे० प्रा० व्या० ८|४|२६१ | Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001702
Book TitlePrakritmargopadeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1968
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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