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________________ ( ३८६ ) घट्ट (घृष्टम्)=घिसा हुआ, घिसना । उच्चारण भेद से बने हुए इन अनेक रूपों को साधनिका वर्णविक नियम द्वारा समझ लें। भविष्यत्कृदन्त धातु में ‘स्सन्त' अथवा 'स्संत' तथा 'इस्सन्त अथवा 'इस्संत' लगाने से भविष्यत्कृदंत रूप बनते हैं। इसी प्रकार 'स्समा'ण' और 'इस्समा प्रत्यय लगाने से भविष्यत्कृदंत रूप बनते हैं...ऐसे अकारांत नामों के रूप पंलिंग में 'वीर' के समान होते हैं तथा नपंसलिंग में 'फल' के समान रूप बनते हैं। धातु में 'स्सई' तथा 'इस्सई' प्रत्यय लगाने से तथा 'स्सन्त' अथवा स्संत' प्रत्यय का ‘स्सन्ता' तथा 'स्सन्ती' बनाने से अथवा 'स्संता' तथा 'स्संतो' बनाने से स्त्रीलिंगी भविष्यत्कृदंत बनते हैं । इसी प्रकार 'इस्संती' तथा 'इस्संता' वगैरह प्रत्यय भी होते हैं तथा 'रसमारणा', 'स्समायो'. 'इस्समाणा', 'इस्समाणी' प्रत्यय भी बनते हैं। । उक्त प्रत्ययों में जो प्रत्यय प्राकारांत हैं उससे युक्त नामों के रूप 'माला' जैसे समझ लें तथा जो प्रत्यय ईकारांत है उससे युक्त नामों के रूप 'नदी' जैसे समझ लें। उदाहरण - हो धातुपंलिंग-होस्संतो ) (भविष्यन ) = होता होगा होस्समायो । नपुंसकलिंग-होस्संतं ।( भविष्यत् ) ,, होस्समारणं । स्त्रीलिंग --- होरसई ) ( भविष्यन्ती ) = होती होगी होईस्सई होस्सन्ती । होस्सन्ता होस्समारणी । होस्समारणा ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org |
SR No.001702
Book TitlePrakritmargopadeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1968
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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